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________________ १०५ करना नितान्त आवश्यक हो गया है। जैन श्रावकाचार के अनुसार न्यायपूर्वक अर्जन, माता-पितादि की सेवा, धर्मश्रवण, जितेन्द्रियता आदि गुण श्रावक में होना चाहिए। पाक्षिक श्रावक आठ मूल गुणों का पालन करता है- पञ्चाणुव्रत तथा मद्य, मांस, मधु त्याग, इन अष्टमूलगुणों का पालन करता है। देवपूजा, गुरुभक्ति, स्वाध्याय, संयम, तप और दान करने वाला सभी व्यसनों से निर्मुक्त होता है। इसी सन्दर्भ में जैन साहित्य में अहिंसा और सदाचार का काफी विस्तार से वर्णन मिलता है। यज्ञ, बलि आदि जैसी कर्मकाण्डीय क्रियाओं और त्रिमूढताओं से दूर रहने का भी आह्वान किया गया है। इसी तरह नैष्ठिक श्रावक ग्यारह प्रतिमाओं का पालन कर आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण करता है और नैतिक प्रदूषण से बचता/बचाता है। एक दिन ऐसा आयेगा जब मनुष्य को स्वास्थ्य के सबसे बुरे शत्रु के रूप में निर्दयी 'शोर' से संघर्ष करना पड़ेगा। यह ध्वनि प्रदूषण उद्योग-धन्धों, मशीनों, परिवहन और मनोरंजन के साधनों द्वारा उत्पन्न हो रहा है जिसे संयमित किया जा सकता है। परिमाण व्रत के पालन करने से। . पर्यावरण का यह विकट आन्तरिक और बाह्य असन्तुलन धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में जबरदस्त क्रान्ति लायेगा। यह क्रान्ति अहिंसक हो तो निश्चित ही उपादेय होगी पर यह असन्तुलन और बढ़ता गया तो खूनी क्रान्ति होना भी असंभव नहीं है। जहाँ एक दूसरे समाज के बीच लम्बी-चौड़ी खाई हो गयी हो, एक तरफ प्रासाद और दूसरी तरफ झोपड़ियाँ हो, एक ओर कुपच और दूसरी ओर भूख से मृत्यु हो तो ऐसा समाज बिना वर्ग संघर्ष के कहाँ रह सकता है? सामाजिक समता की प्रस्थापना और वर्ग संघर्ष की व्यथा-कथा को दूर करने के लिए अहिंसक समाज की रचना और पर्यावरण की विशुद्धि एक अपरिहार्य साधन है। यही धर्म है और यही संयम है और यही सम्यग्ज्ञान और सम्यक् आचरण का सार है एवं खु णाणिणो सारं जं हिंसइ ण कंचणं। अहिंसा समयं चेव एयावंतं वियाणि या।। (सूत्रकृतांग, १.१.४.१०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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