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________________ अमरकोष में शिवतत्त्व ओमप्रकाश सिंह कोष साहित्यिक परम्परा की निधि है। लेखक उसमें अपने समय तक संवर्धित विचारधारा और सांस्कृतिक तथ्यों को शब्दों में गूंथ देता है। समय की शिला पर इसी परिवेश में नये-नये शब्दों का निर्माण होता है और सांस्कृतिक अभ्युत्थान की सीढ़ियां निर्मित होती रहती हैं। इस दृष्टि से भारतीय वाङ्मय में कोष परम्परा का अनूठा महत्त्व है। वैदिक, जैन और बौद्ध वाङ्मय में इस प्रकार की कोष-परम्परा काफी समृद्ध रही है। यदि हम उसके बीज को खोजने का प्रयत्न करें तो हमे ये बीज बड़ी आसानी से वेदों, उपनिषदों, संहिताओं, जैनआगमों और पालि ग्रन्थों में उपलब्ध हो सकते हैं। टीकाओं और अट्ठकथाओं में विशेष रूप से ऐसे एकार्थक और अनेकार्थक शब्द मिलते हैं जो अपने आपमें कोष की संरचना कर देते हैं। यहाँ हम समूचे कोषों की चर्चा नहीं करना चाहेंगे, परन्तु इतना अवश्य कहेंगे कि कोष वाङ्मय निश्चित रूप से हमारी सांस्कृतिक धरोहर का काम करता है। अमरकोष ऐसी ही कोष-परम्परा का प्रतिनिधित्व करता है। इसे “त्रिकाण्डकोष नामलिङ्गानुशासन और 'देवकोष' के नाम से भी जाना जाता है। संस्कृत कोष वाङ्मय में भोगीन्द्र, कात्याययन, वाचस्पति, वररुचि, रुद्र, अमरदत्त, गङ्गाधर, वाग्भट्ट, धनञ्जय, श्रीधर सेन आदि आचार्यों के शब्दानुशासन और कोष ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं पर उनमें अमरसिंह का अमरकोष एक विशेष महत्त्व रखता है। तीन काण्डों में विभाजित इस कोष में स्वर्ग, व्योम, दिक, काल, धी, शब्द, नाट्य, पाताल, भोगि, नरक, वारि, भूमि, पुर, शैल, वनौषधि, सिंह, मनुष्य, ब्रह्म, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, विशेष्यनिघ्न, संकीर्ण, नानार्थ, अव्यय और लिङ्गादिसंग्रह शीर्षक वर्गों में विभक्त हैं। इन वर्गों का यदि सांस्कृतिक अध्ययन किया जाये तो विपुल सामग्री उपलब्ध हो सकती है। यही कारण है कि इस ग्रन्थ पर लगभग इकतालिस व्याख्यायें लिखी गयी हैं जो उसकी लोकप्रियता को द्योतित करती हैं। *. पुस्तकालयाध्यक्ष, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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