________________
९० यदि इसे सङ्गत माना जाये तो एक व्यक्ति जिस पदार्थ को जान रहा है, उसे दूसरेके द्वारा भी ज्ञात मानना पड़ेगा। अतएव इन आपत्तियोंके कारण ज्ञानको स्वसंवेदी-अपनेको जाननेवाला ही मानना चाहिए, जो कि युक्तिसङ्गत है। फलत: तत्त्वोपप्लववादीके इस कथनमें कि जीव नहीं है प्रत्यक्ष बाधा है। अत: ‘जीव है' यह सुतरां सिद्ध है।।
प्रश्न- स्वसंवेदन प्रत्यक्ष के आधार पर गर्भ से लेकर मरणपर्यन्त जीव का रहना सिद्ध है- यह हम (चार्वाक) मान लेते हैं, किन्तु गर्भ से पहले और मृत्यु के बाद उसका अस्तित्व कैसे सिद्ध हो सकता है?
___ उत्तर- जो वस्तु सत् हो तथा जिसका कोई उत्पादक न हो, वह नित्य होती है और इसीलिए वह अनादि और अनन्त होती है। जीव सत् है और किसीसे उत्पन्न भी नहीं होता, अत: नित्य है; अनादि है; अनन्त है। दृष्टान्त के लिए पृथ्वी, जल, तेज और वायु, जिन्हें आप स्वयं अनादि और अनन्त मानते हैं। यदि आप यह कहें कि पृथिवी आदि चारों तत्त्व जीवकी उत्पत्ति में हेतु हैं, अत: वह न नित्य है; न अनादि है; न अनन्त हैं तो हम (जैन) आपसे पूछते हैं कि पृथ्वी आदि चारों तत्त्व सम्मिलित रूपमें जीवको उत्पन्न करते हैं या एक-एक करके। दोनों ही पक्ष असङ्गत हैं। क्यों? सुनिए- यदि चारों में से किसी एकको जीवकी उत्पत्ति में हेतु मानते हैं, तो जीवमें उसकी संख्याका प्रसङ्ग आयेगा-जिस भूतसे जीवकी उत्पत्ति होगी, उसके प्रत्येक कणमें जीवोत्पादनकी शक्ति होगी या उनके समुदायमें? यदि प्रत्येकमें, तो कणों की जितनी संख्या होगी, उतनी ही जीवोंकी संख्या होगी। पर किसी एक शरीरमें अनेक जीवों की उत्पत्ति मानना ठीक नहीं; क्योंकि सभी जीवोंकी अलग-अलग इच्छाएँ होंगी, फलत: उनकी पूर्तिके लिए सभी जीवोंमें सदा महाभारत छिड़ा रहेगा। यदि इससे बचनेके लिए किसी एक या चारों भूतोंके कण समुदायमें जीवोत्पादनकी शक्ति मानें, तो यह भी ठीक नहीं; क्योंकि चाहे एक भूतके कण हों, चाहे चारोंके, वे सब के सब अचेतन हैं, अत: उनसे चेतनकी उत्पत्ति नहीं हो सकती। ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है, जो अचेतनसे चेतनकी उत्पत्ति को सिद्ध करनेमें सहायक हो। प्रत्येक कार्यकी उत्पत्ति में उपादान और निमित्त ये दो कारण होते हैं। उपादान कारण सदा सजातीय ही होता है, यह नियम है। जो कारण स्वयं कार्यरूपमें परिणत हो जाये, वह उपादान कारण कहलाता है और अन्य सहायक कारणोंको निमित्त कारण कहते हैं। घड़ेकी उत्पत्ति में मिट्टी और कपड़ेकी उत्पत्तिमें तन्तु उपादान कारण होते हैं। जबतक घड़े तथा कपड़ेका अस्तित्व रहता है तबतक मिट्टी और तन्तुओंका साथ बना रहता है। जैसे छाया मनुष्यका अनुगमन करती है वैसे ही मिट्टी और तन्तु घड़े और कपड़ेका अनुगमन करते हैं।
शङ्का-उपादान कारण सदा सजातीय ही होता है, यह कहना निर्दोष नहीं हैव्यभिचरित है; क्योंकि सींग बाणका सजातीय नहीं है, फिर भी उससे बाणकी उत्पत्ति देखी जाती है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org