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- (क) वेदान्त दर्शन की मान्यता-वेदान्त दर्शन का कहना है कि आत्मा कूटस्थ नित्य है।
(ख) सांख्य दर्शन की मान्यता- सांख्य दर्शन का कथन है कि आत्मा अकर्ता है।
(ग) न्याय-वैशेषिक दर्शन की मान्यता- न्याय-वैशेषिक दर्शन आत्मा को जड़-ज्ञानशून्य मानता है।
(घ) बौद्ध दर्शन की मान्यता- बौद्ध दर्शन ज्ञान की सन्तानको आत्मा बतलाता है। इस तरह जब आत्माके धर्मोके विषयमें प्राय: सभी दर्शन एक-दूसरेसे विपरीत ही प्रतिपादन करते हैं, तब किसी एकको भी सत्य नहीं माना जा सकता। अत: इस विपरीत कथनके कारण भी आत्मा का अभाव ही सिद्ध होता है; क्योंकि जब कोई धर्म सिद्ध हो तभी तो धर्मीको स्वीकार किया जा सकता है।
उत्तर पक्ष- 'जीव नहीं है'- यह तत्त्वोपप्लव दर्शनका कथन प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे खण्डित है। फिर इसे सिद्ध करनेके लिए हेतका प्रयोग करके कौन अपना परिहास करायेगा? जीव नहीं है; क्योंकि उसकी उपलब्धि नहीं होती- जीवो नास्ति तदनुपलब्धेः। यहाँ जीव पक्ष है; नास्ति (नास्तित्व) साध्य है और अनुपलब्धेः हेतु है। प्रत्येक प्राणी को अपने-अपने सुख-दुःख आदिकी अनुभूति होती है.---'मैं सुखी हूँ या मैं दुःखी हूँ—यह अनुभव सभी को होता है। जीव सुख-दुःख आदि अवस्थाओंसे युक्त है, अत: इसका अनुभव स्वसंवेदन प्रत्यक्ष के आधार सभीको होता है। मैं सुखी हूँ-इत्यादि अनुभूतियोंमें मैं का वाच्यार्थ आत्मा ही है। ऐसी स्थितिमें वह (आत्मा) नहीं है- यह कहना अपना परिहास कराना ही तो है। जो भी व्यक्ति वस्तुका प्रत्यक्ष अनुभव होनेपर भी उसका निषेध करता है, उसका परिहास ही हुआ करता है। यदि यह कहा जाये कि स्वसंवेदन प्रत्यक्ष होता ही नहीं; क्योंकि कोई भी ज्ञान स्वयंको नहीं जानता। कारण कि ज्ञान वेद्य है, जैसे कलश आदि। कलशको सभी जान लेते हैं, पर वह किसीको भी नहीं जान सकता। बिलकुल यही स्थिति ज्ञानकी भी है। यह कथन ठीक नहीं; क्योंकि जैसे दीपक अपनेको और अन्य पदार्थको भी प्रकाशित करता है, इसी तरह ज्ञान भी अपने साथ अन्य पदार्थोंको भी जानता है। यदि ज्ञान अपनेको नहीं जाने तो वह अन्य पदार्थों को भी नहीं जान सकता। यदि यह कहा जाये कि प्रथम ज्ञान को दूसरा ज्ञान और दूसरे ज्ञानको तीसरा ज्ञान जान लेता है, तो इस परम्पराका कभी अन्त ही नहीं आ सकेगा। ऐसी स्थितिमें अनवस्था हो जायगी। फिर यह भी एक प्रश्न होगा कि उत्तरवर्ती ज्ञान स्वयंको जानता है या नहीं? यदि नहीं जानता, तो वह अपने पूर्ववर्ती ज्ञानको भी नहीं जान सकता। अतश्च किसी भी पदार्थका ज्ञान नहीं हो सकेगा। यदि परोक्ष ज्ञानसे भी पदार्थका ज्ञान होता है- यह कहा जाये, तो यह भी असङ्गत है।
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