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________________ तत्त्वसंसिद्धि और उसकी वचनिका : एक विवेचन तत्त्वसंसिद्धि तत्त्वसंसिद्धि विक्रमकी ११वीं शतीके पूर्व भाग के प्रसिद्ध महाकवि वीरनन्दीके महाकाव्य-‘चन्द्रप्रभचरितम्' का एक विशिष्ट अंश है। इस महाकाव्यका प्रतिपाद्य विषय अष्टम तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ का जीवन वृत्त है, पर इसके प्रासङ्गिक विषयों में दार्शनिक चर्चा भी है, जो ६८ (२, ४३-११०) श्लोकों में पायी जाती है। इसमें मुख्यतः तत्त्वोपप्लव दर्शन की तथा प्रसङ्गतः चार्वाक, वेदान्त, सांख्य, न्याय-वैशेषिक, बौद्ध और मीमांसा दर्शनों की कतिपय तात्त्विक मान्यताओं की समीक्षा करके जैनदर्शन के मान्य जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष-इन सात तत्त्वों की सिद्धि प्रबल युक्तियों के आधार पर की गयी है। तत्त्वोपप्लव दर्शन' का पूर्व पक्ष तत्वोपप्लव दर्शनके अनुसार कोई जीव नामक प्रामाणिक पदार्थ नहीं है, अत: उसके अभाव में अजीव पदार्थ कैसे सिद्ध हो सकता है? क्योंकि अजीव जीवकी अपेक्षा रखता है। स्थूल और सूक्ष्मकी भाँति जीव और अजीव परस्पर सापेक्ष हैं-कोई स्थूल हो तो उसकी अपेक्षासे कोई सूक्ष्म भी हो सकता है और कोई सूक्ष्म हो तो उसकी अपेक्षासे कोई स्थूल भी हो सकता है। इसी तरह कोई जीव हो तो उसकी अपेक्षासे कोई अजीव भी हो सकता है। जब जीव है ही नहीं तो अजीवका अभाव ही मानना पड़ेगा। अतएव जीवके धर्म बन्ध और मोक्ष आदि भी कैसे हो सकते हैं? क्योंकि धर्मी (पदार्थ) के होने पर ही उसके धर्म (स्वभाव या गुण) होते हैं, न कि उसके अभाव में। इस कारणसे सभी तत्त्व ग्रन्थों में ही छिपे रहें तो ठीक है। अन्यथा ज्यों-ज्यों उनपर विचार किया जायेगा त्यों-त्यों वे जीर्णवस्त्रकी भाँति खण्डित होते जायँगे। सड़ा-गला कपड़ा जब तक तह किया हुआ रखा रहता है तब तक अच्छा प्रतीत होता है, पर जब तह खोलकर फैलाया जाने लगता है तब वह छिन्न-भिन्न होने लगता है और उसमें उलझनें भी आने लगती हैं। बिल्कुल यही स्थिति तत्त्वों की है। जो दार्शनिक जीवको स्वीकार भी कर लेते हैं, वे भी उसके धर्म या स्वरूपके विषयमें विवाद करते देखे जाते हैं; क्योंकि उनके संस्कार अपने-अपने आगमसे प्रभावित रहते हैं। जैसे *. डॉ०कमलेश कुमार जैन से साभार प्राप्त. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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