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________________ ८७ १३. प्राकृत में २३ गाथात्मक एक 'भयहर-स्तोत्र' पाया जाता है, जो श्वेताम्बरों के यहाँ से 'जैन-स्तोत्र - सन्दोह' द्वितीय भाग में प्रकाशित हुआ है। यह स्तोत्र भी मानतुङ्ग की ही कृति बतलाया जाता है; क्योंकि 'भक्तामर स्तोत्र' की तरह इसके भी अन्तिम पद्य में (श्लेषात्मक) मानतुङ्ग शब्द पाया जाता है। 'भक्तामर स्तोत्र' में जिस तरह ८ भयों का वर्णन है, उसी तरह 'भयहर-स्तोत्र' में भी । जैन निबन्ध रत्नावली, पृष्ठ, ३३५. १४. प्राणप्रियं नृपसुता किल रैवताद्रिशृङ्गासंस्थितमवोचदिति प्रगल्भम् । अस्मादृशामुदितनीलवियोगरूपेऽवालम्बनं भवजले पततां जनानाम् ।।१।। १५. अगर यह ठीक है तो आदिपुराण पर्व ७ श्लोक २९३ से ३०१ का जो वर्णन 'भक्तामर स्तोत्र' से मिलता हुआ है वह आचार्य जिनसेन ने संभव है 'भक्तामरस्तोत्र से लिया हो । जैन निबन्ध रत्नावली, पृ० ३३८. - १६. राजा जयसिंह सिद्धराज को दार्शनिक शास्त्रार्थ सुनने का बड़ा शौक था, स्याद्वादरत्नाकर के कर्ता आचार्य देवसूरि के साथ उसने अपनी राजसभा में ही कल्याणमन्दिर - स्तोत्र के रचयिता कर्णाटक के दिगम्बराचार्य कुमुदचन्द्र का महत्त्वपूर्ण वाद कराया था। • भारतीय इतिहास: एक दृष्टि- डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन, पृ० २०७. १७. 'प्राग्भारसंभृतनभांसि रजांसि इत्यादि तीन पद ऐसे हैं जो पार्श्वनाथ को दैत्यकृत उपसर्ग से युक्त प्रकट करते हैं, जो दिगम्बर मान्यता के अनुकूल और श्वेताम्बर मान्तया के प्रतिकूल हैं; क्योंकि श्वेताम्बरीय आचाराङ्ग-निर्युक्ति में वर्धमान को छोड़ कर शेष २३ तीर्थङ्करों के तप: कर्म को निरुपसर्ग वर्णित किया है। इससे भी प्रस्तुत कल्याण - मन्दिर दिगम्बर कृति होनी चाहिए । जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, पृ० ५१६. १८. 'कल्याणमन्दिर-स्तोत्र' में केवल ४४ पद्य हैं परन्तु काव्यदृष्टि से यह नितान्त अभिनन्दनीय हैं । कविता बड़ी प्रासादिक तथा नैसर्गिक है । कवि की उक्तियों में बड़ा चमत्कार है । संस्कृत साहित्य का इतिहास - पं० बलदेव उपाध्याय, पृष्ठ ३६४. - , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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