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८द
है। पाठ पूर्व और उत्तर दिशा की तरफ मुख करके करना ठीक है।
__ - मङ्गलवाणी पृ० २८०-२८२ (मङ्गलवाणी संभवत: स्थानकवासियों के यहाँ से प्रकाशित है) २. बाण के अतिरिक्त अन्य कई कवि हर्ष की सभा में विद्यमान थे। ‘सूर्यशतक'
या 'मयूरशतक' के रचयिता मयूर कवि तथा 'भक्तामर-स्तोत्र' नामक स्तोत्रकाव्य के कर्ता मानतुङ्ग दिवाकर भी बाण के साथ हर्ष की राजसभा में थे।
- संस्कृतकविदर्शन, डॉ० भोलाशङ्कर व्यास, पृ० ४८३-८४. ३. 'जयन्ती प्रकरण' को 'जयन्तीचरित' भी कहते हैं। भगवतीसूत्र के १२ वें शतक
के द्वितीय उद्देशक के आधार से मानतुङ्ग सूरि ने ‘जयन्तीप्रकरण' की रचना की
है। - प्राकृत साहित्य का इतिहास, डॉ० जगदीशचन्द्र, पृ० ५६६. ४. जैनः श्वेताम्बराचार्यो मानतुङ्गाभिधः सुधीः ।
महाप्रभावसम्पन्नो विद्यते तावके पुरे ।। १२४।। वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्। तमेव विदित्वाऽतिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय।।
- शुक्ल यजुर्वेद, अध्याय ३१ कण्डिका (मन्त्र) १८. ६. अहो प्रभावो वाग्देव्या यन्मातङ्गदिवाकरः ।
श्री हर्षस्याभवत् सभ्य: समो बाणमयूरयोः।। सुना जाता है कि दिवाकर (मानतुङ्ग) का जन्म नीच (चाण्डाल) जाति में हुआ था परन्तु ये अपनी गुणगरिमा से बाण और मूयर के समान ही राजा के आदरपात्र थे। नमिऊण पणय-सुरगणचूडामणिकिरणरंजियं मुणिणो।
चलणजुगलं महाभयपणासणं संथवं वुच्छं।। ९. एवं महाभयहरं पासजिणंदस्स संथवमुआरं।
भवियजणाणंदयरं कल्लाणपरं पर-निहाणं।।१९।। १०. जो पढइ जो य निसुणई ताणं कइणो य माणतुंगस्स।
पासो पावं पसमेउ सयलभुवणच्चिअच्चलणो।।२१।। ११. पासह समरण जो कुणइ संतुट्ठहियएण।
अद्वृत्तरसयवाहिभय नासइ तस्स दूरेण।।२४।। १२. ततस्तदनुसारेण स्तवनं विदधे प्रभुः।
ख्यातं भयहरं नाम तदद्यापि प्रवर्तते।।
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