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________________ अपनी काव्य-कल्पलता में मुख्य रूप से यह प्रतिपादन किया है कि कविता कैसी बनाई जाय और उसे सजाया कैसे जायें? यों इस विषय पर काव्यमीमांसाकार राजशेखर और काव्यानुशासनकार हेमचन्द्र ने भी कलम चलाई है पर अरिसिंह अपनी सूझ-बूझ से उन दोनों से काफी आगे निकल गये? फलत: देवेश्वर को भी "कविकल्पलता' लिखने का प्रयास करना पड़ा और उसे लिखते समय ‘काव्य-कल्पलता' को सामने रखना पड़ा। दोनों ग्रन्थों को आद्यापांत देखने से पाठक को उक्त बात स्पष्ट ही समझ में आ जाती है। दोनों की तुलना देवेश्वर (१४वीं शती) ने अपनी कृति का नाम 'कविकल्पलता' रखा, जो स्पष्ट ही 'काव्य-कल्पलता' नाम से प्रभावित है। काव्य-कल्पलता में चार प्रतान हैं तो कविकल्पता में चार स्तवक हैं। काव्य-कल्पलता के प्रतानों में स्तवक हैं, तो कविकल्पलता के स्तवकों में कुसुम हैं। काव्य-कल्पलता में सबसे पहले छन्द के अभ्यास की शिक्षा दी है, बिलकुल यही शिक्षा कविकल्पलता में भी दी गई है। अन्य विषय भी प्राय: मिलते-जुलते हैं। इना साम्य अकस्मात् नहीं हो सकता। काव्य-कल्पलताकार ने अपने ग्रन्थ के प्रारंभ में अपने इष्टदेव की वाणी को नमस्कार किया है तो कवि-कल्पलताकार ने अपने परमाराध्य देव धूर्जटि (शिवजी) की जटा को नमस्कार किया है। लगता है, कवि-कल्पलता के कर्ता ने काव्य-कल्पलता . का अक्षरशः अनुसरण किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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