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महाकवि अर्हद्दास और उनकी रचनाएँ *
विपुल संस्कृत वाङ्मय की श्रीवृद्धि में जिन मनीषियों ने हाथ बटाया है, उनमें महाकवि अर्हद्दास का नाम भी उल्लेखनीय है । संस्कृत साहित्य के सहृदय अध्येता इनकी उपलब्ध कृतियों को पढ़ कर आनन्द विभोर हुए बिना नहीं रह सकते
समय - महाकवि अर्हद्दास ने यद्यपि अपनी कृतियों में, जो उपलब्ध हैं, कहीं पर भी अपने समय का संकेत नहीं दिया, पर उनके अन्तः साक्ष्यों के आधार पर उनके समय का परिज्ञान आसानी से हो जाता है
इन्होंने अपनी कृतियों में आचार्य समन्तभद्र, पूज्यपाद, अकलङ्क, जिनसेन और गुणभद्र के अतिरिक्त पण्डितप्रवर आशाधर का भी उल्लेख किया है।
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आचार्यकल्प पण्डितप्रवर आशाधर का समय सुनिश्चित हैं, जैसा कि श्रद्धे.. स्व० पं० नाथूरामजी प्रेमी ने अपने जैन साहित्य और इतिहास ( पृ० ३४१-३५८) में लिखा है। आशाधरजी ने 'अनगारधर्मामृतम्' की टीका विक्रम संवत् १३०० में समाप्त की। अतः कविवर अर्हद्दास १३ वीं शती से पूर्व नहीं हुए। इनकी उत्तरावधि का निश्चय अजितसेन की महत्वपूर्ण कृति — 'अलङ्कारचिन्तामणि:' से हो जाता है, जिसमें इनके 'मुनिसुव्रतकाव्यम्' के प्रथम सर्ग का ३४वां पद्य श्लेषगर्भा परिसंख्या के उदाहरण के रूप में दिया गया है। अलङ्कारचिन्तामणिकार का समय विक्रम की १४वीं शती है । अतएव यह सुनिश्चित है कि महाकवि अर्हद्दास का समय विक्रम की १३वीं शती का अन्त और १४वीं का आद्य चरण है।
कृतियों का परिचय
१. भव्यजन कण्ठाभरणम् — प्रस्तुत कृति ३४२ पद्यों में समाप्त हुई है। इसमें प्राय: उपजाति छन्द का प्रयोग किया गया है। इसमें देव, शास्त्र, गुरु और रत्नत्रय का वर्णन किया गया है। साथ ही जैनेतर प्रायः सभी देवी-देवताओं की समीक्षा विस्तार से की गई है। जिससे प्रस्तुत कवि के हिन्दू पुराणों के अध्ययन का अनुमान सहज में ही लग जाता है। वैदिकी हिंसा की समीक्षा के प्रसङ्ग में मद्य- माँस के दोषों पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। इसके अतिरिक्त बौद्धों, श्वेताम्बरों एवं कतिपय दिगम्बर संघों की भी समालोचना की गई है। पद्यों के नमूने
डॉ० कमलेश कुमार जैन से साभार प्राप्त.
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