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९८. 'चन्द्रप्रभाभिसंबद्धा रसपुष्टा मनः प्रियम् । कुमुद्वतीव नो धत्ते भारती वीरनन्दिनः । । पार्श्वनाथचरित १, ३०।।
९९. 'शाकाब्दे नगवार्धिरन्ध्रगणने संवत्सरे क्रोधने, मासे कार्त्तिकनाम्नि बुद्धिमहिते शुद्धे तृतीयादि । सिंहे पाति जयादिके वसुमतीं जैनी कथेयं मया, निष्पत्तिं गमिता सती भवतु वः कल्याणनिष्पत्तये।। पार्श्वनाथचरित, प्र०प०५ ।। १००. प्रस्तुत 'प्रमोदूत' (प्रमोद) संवत्सर वि० सं० १५६० (शक सं० १४२५) माघ शुक्ल प्रतिपदा शनिवार घटी ५३ / ४८ श्रवण नक्षत्र में सिद्ध होता है। जिसका नियामक ग्रहलाघवीय ऋणाहर्गण १८९० तथा मध्यम सूर्य ९ / १८ / ४२/४७ त्रिफल चन्द्रमा ९ / १९/४६ है।
विशेष- माघ शुक्ल प्रतिपदा को रोहिणी नक्षत्र का होना सम्भव नहीं है, जैसा कि सूर्यसिद्धान्त मान अध्याय श्लोक १६ से ज्ञात होता है
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'कार्तिकादिषु संयोगे कृत्तिकादिद्वयं द्वयम् ।
अन्त्योपान्त्यौ पञ्चमश्च त्रिधा मासत्रयं स्मृतम् ।।'
इस आधार पर माघ शुक्ल पूर्णिमा को श्लेष या मघा का होना सम्भव नहीं है। इससे पूर्व पन्द्रहवें दिन प्रतिपदा को श्रवण या घनिष्ठा नक्षत्र हो सकता है, न कि रोहिणी.
१०१. जैन साहित्य का बृहद इतिहास (भाग ५, पृष्ठ २४१ ) के अनुसार 'कामन्दकीयनीतिसार:' का संकलन उपाध्याय भानुचन्द्र के शिष्य सिद्धिचन्द्र (अकबर बादशाह के समकालीन) ने किया था । यदि यह प्रमाणित हो जाय तो पञ्जिकाकार के समय पर पर्याप्त प्रकाश पड़ सकता है ।
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