________________
है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (२९८,५५) में चन्द्रप्रभ की अनेक पत्नियों का
उल्लेख है, जो चन्द्रप्रभचरितम् (१७,६०) में भी पाया जाता है। २८. चन्द्रप्रभ के वैराग्य का कारण तिलोयपण्णत्ती (४,६१०) में अध्रुव वस्तु का
और उत्तरपुराण (५४, २०३) तथा त्रिषष्टिस्मृत (२८, ९) में दर्पण में मुख की विकृति का अवलोकन लिखा है। त्रिषष्टिशलाकपुरुषचरित और पुराणसारसंग्रह में वैराग्य के कारण का उल्लेख नहीं है। हरिवंशपुराण (७२२,२२२) में शिविका का नाम 'मनोहरा', त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित (२९८,६१) में मनोरमा, पुराणसारसंग्रह (८६,५८) में 'सुविशाला'
लिखा है। ३०. तिलोयपण्णत्ती (४,६५१) में वन का नाम 'सर्वार्थ', उत्तरपुराण (५४,२१६)
में ‘सर्वर्तुक', त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (२९८,६२) में एवं पुराणसारसंग्रह
(८६,५८) 'सहस्राम्र' लिखा है। ३१. चन्द्रप्रभचरितम् में मिति नहीं दी, अत: हरिवंशपुराण (७२३, २३३) के आधार
पर यह मिति दी है। उत्तरपुराण (५४,२१६) में भी यही मिति है, पर कृष्ण पक्ष का उल्लेख नहीं है। पुराणसारसंग्रह (८६,६०) में केवल अनुराधा नक्षत्र का ही उल्लेख है और त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (२९८,६४) में पौष कृष्ण
त्रयोदशी मिति दी गयी है। ३२. हरिवंशपुराण (७२४,२४०) में और त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (२९८,६६)
में पुर का नाम 'पद्मखण्ड' दिया है एवं पुराणसारसंग्रह (८६,६२) में
'नलिनखण्ड'। ३३. हरिवंशपुराण (७२४,२४६) में और पुराणसारसंग्रह (८६,६२) में राजा का
नाम 'सोमदेव' दिया है। ३४. चन्द्रप्रभचरितम् में मिति नहीं दी, अत: उत्तरपुराण (५४,२२४) के आधार पर
दी गयी है। चन्द्रप्रभचरितम् में चन्द्रप्रभ के जन्म और मोक्ष कल्याणकों की मितियाँ
दी हैं, शेष तीन कल्याणकों की नहीं। ३५. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (२९८,७५) में समवसरण का विस्तार एक योजन
लिखा है। ३६. तिलोयपण्णत्ती (४,११२०) में पूर्वधारियों की संख्या चार हजार दी है। ३७. तिलोयपण्णत्ती (४,११२०) में उपाध्यायों की संख्या दो लाख दस हजार चौरासी
दी है। ३८. तिलोयपण्णत्ती (४,११२१) में अवधिज्ञानियों की संख्या दो हजार लिखी
मिलती है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org