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२७. इस घटना की चर्चा उत्तरपुराण और पुराणसारसंग्रह दोनों में नहीं है। १८. उत्तरपुराण (५४-१४१) में पद्मनाभ की अनेक रानियाँ होने का संकेत है। १९. उत्तरपुराण और पुराणसारसंग्रह में इस घटना का तथा इसके बाद होने वाले युद्ध
का उल्लेख नहीं है। २०. वाराणसी से आसाम तक का पूर्वी भारत 'पूर्वदेश' के नाम से प्रख्यात रहा।
- उत्तरपुराण, पुराणसारसंग्रह, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित और त्रिषष्टिस्मृति में इस देश का उल्लेख नहीं है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (२९६,१३) में इस नगरी का नाम 'चन्द्रानना', उत्तरपुराण (५४,१६३) में 'चन्द्रपुर', पुराणसारसंग्रह (८२,३९) में 'चन्द्रपुर', तिलोयपण्णत्ती (४,५३३) में 'चन्द्रपुर' और हरिवंश (६०,१८९) में 'चन्द्रपुरी' लिखा है। सम्प्रति इसका नाम 'चन्द्रवटी' 'चन्द्रौटी' या 'चन्दरौटी' प्रसिद्ध है। यह वाराणसी से १८ मील दूर गङ्गा के बायें तटपर है। यहाँ दिगम्बर
व श्वेताम्बर सम्प्रदाय के दो अलग-अलग जैनमन्दिर हैं। सहे. तिलोयपण्णत्ती (४,५३३) में माता का नाम 'लक्ष्मीमती' लिखा है। २३. उत्तरपुराण, पुराणसारसंग्रह और त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में केवल स्वप्नों की
संख्या का ही उल्लेख है। गुणभद्र और दामनन्दी ने स्वप्नों की संख्या १६ और हेमचन्द्र ने १४ दी है। हेमचन्द्र की दृष्टि से १४ स्वप्न ये हैं- गज, वृषभ, सिंह, लक्ष्मी- अभिषेक, माला, चन्द्र, सूर्य, कुम्भ, ध्वज, सागर, सरोवर, विमान, रत्नराशि और अग्नि। सिंहासन और नाग-विमान ये दो स्वप्न दिगम्बर
साहित्य में अधिक हैं। २४. यह मिति उत्तरपुराण (५४,१६६) के आधार पर दी है; क्योंकि तिलोयपण्णत्ती,
हरिवंश और पुराणसारसंग्रह की भाँति प्रस्तुत चन्द्रप्रभचरित में इसका उल्लेख नहीं है। उत्तरपुराण में जो मिति दी गयी है वह त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित
(२९६,२९) में भी दृष्टिगोचर होती है। २५. यही मिति उत्तरपुराण, हरिवंश तथा तिलोयपण्णत्ती में अङ्कित है,
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (२९७,३२) में पौष कृष्णा द्वादशी लिखी है, पर
पुराणसारसंग्रह (८४,४४) में केवल अनुराधायोग का ही उल्लेख मिलता है। २६. उत्तरपुराण (५४,१७४) में स्तुति का उल्लेख नहीं है, 'आनन्द' नाटक का
उल्लेख है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में नाटक का नहीं, स्तुति का उल्लेख है। २७. उत्तरपुराण (५४,२१४) में और पुराणसारसंग्रह (८६,५७) में क्रमश: निष्क्रमण
के अवसर पर अपने पुत्र वरचन्द्र, व रवितेज को चन्द्रप्रभ के उत्तराधिकार सौंपने का उल्लेख है पर दोनों में उनके विवाह के स्पष्ट उल्लेख करने वाले पद्य नहीं
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