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नाम का उल्लेख किया है, समय के आधार पर उनका समय सुनिश्चित है। नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने अपने कर्मकाण्ड में उनके नाम का तीन बार उल्लेख किया है जैसा कि पीछे लिखा जा चुका है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि वे नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के समकालीन हैं। प्रेमीजी ने नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती का समय विक्रम की ग्यारहवीं शती का पूर्वार्द्ध सिद्ध किया है, अत: चन्द्रप्रभचरित के कर्ता का भी यही समय सिद्ध होता है।९५ बलदेव उपाध्याय ने चन्द्रप्रभचरित के कर्ता वीरनन्दी का समय १३०० ई० लिखा है१६ और डॉ० बहादुरचन्द ने भी लगभग यही समय बतलाया है,९७ जो भ्रममूलक है।
वादिराजसूरि ने अपने पार्श्वनाथचरित में वीरनन्दी और उनके चन्द्रप्रभचरित की प्रशंसा ८ की है, जिसकी समाप्ति शक सं० ९४७ (वि०सं० १०८२) में समाप्त९९ हुई थी। अत: वीरनन्दी इनसे पूर्ववर्ती ही ठहरते हैं। ऐसी स्थिति में वीरनन्दी का सुनिश्चित समय विक्रम की ग्यारहवीं शती का पूर्वार्द्ध ही सिद्ध होता है। १४. चन्द्रप्रभचरित की संस्कृत व्याख्या
नाम- प्रस्तुत ग्रन्थ के साथ मुद्रित संस्कृत व्याख्या का सम्पादन जिन आदई हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर किया गया है, उनके पुष्पिकावाक्यों के अनुसार यह 'व्याख्या' नहीं 'व्याख्यान' है और इसका नाम 'विद्वन्मनोवल्लभ' है, पर 'श' प्रति (सर्ग ११) के पुष्पिकावाक्य को ध्यान में रखकर सौन्दर्य की दृष्टि से चन्द्रप्रभचरित के ऊपर व्याख्या का नाम 'विद्वन्मनोवल्लभा प्रकाशित किया गया है और अन्दर 'विद्वन्मनोवल्लभ', यद्यपि समस्यन्त पद के कारण इतना सूक्ष्म अन्तर बाद में ज्ञात हो पाता है।
विशेषता- प्रस्तुत व्याख्या साधारण-सी ही है। विज्ञ पाठकों को इसमें स्वयं व्याख्याकार की कुछ अशुद्धियाँ दृष्टिगोचर होंगी। अलङ्कारों के निर्देश भी यत्र-तत्र भ्रान्तिपूर्ण हैं। पर इसकी सबसे बड़ी विशेषता शुद्ध पाठों की बहुलता है, जिसके कारण मूल ग्रन्थ के सम्पादन में बड़ी सहायता मिली है। मूल ग्रन्थ के पदों को अन्वय के अनुसार रखकर उनकी व्याख्या की गयी है। इसके साहाय्य से दार्शनिक अंश को छोड़कर प्राय: पूरे मूलग्रन्थ का अर्थ खुल जाता है। व्याकरण और कोष आदि ग्रन्थों के इसमें जो उद्धरण दिये गये हैं वे महत्त्वपूर्ण हैं। इसकी तुलना अर्हद्दास के मुनिसुव्रतकाव्य की संस्कृत टीका-'सुखबोधिनी' से की जा सकती है।
व्याख्याकार का परिचय- इस व्याख्या के रचयिता का नाम 'मुनिचन्द्र' है। इन्होंने अपने को 'विद्यार्थी' लिखा है। ‘कन्नडप्रान्तीय-ताड़पत्र-ग्रन्थ सूची' (पृ० १२३).... के अनुसार ये अलगंचपुरी के निवासी द्विजोत्तम देवचन्द्र के पुत्र थे। .
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