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________________ 'माघ की कृतियों की भाँति नहीं, जिनमें शब्द चित्र आवश्यकता की सीमा से बाहर चले गये हैं। बुद्धचरित, सौन्दरनन्द, रघुवंश और चन्द्रप्रभचरित इन चारों की रचना शैली में पर्याप्त साम्य है, फिर भी इतना अवश्य है कि वीरनन्दी को कालिदास की अपेक्षा अश्वघोष ने अधिक मात्रा में प्रभावित किया है। जान पड़ता है कि चन्द्रप्रभचरित का नामकरण बुद्धचरित से और सर्ग संख्या सौन्दरनन्द की सर्ग संख्या से प्रभावित है। बुद्धचरित में वर्णित भगवान बुद्ध के जन्म से निर्वाण तक के जीवनवृत्त की भाँति चन्द्रप्रभचरित में चन्द्रप्रभ का जीवन वृत्त वर्णित है। हाँ, चन्द्रप्रभचरित में वर्णित चन्द्रप्रभ के पिछले जन्मों का वृत्त उसकी अपनी विशेषता है, जो जैनेतर काव्यों में नहीं है। अश्वघोष की कृतियों में बौद्ध धर्म के अनुसार जिस तरह मानव जन्म के लाभ, सांसारिक सुख की असारता बतलायी गयी है, दार्शनिक चर्चा की गयी है और पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग किया गया है, उसी तरह वीरनन्दी की कृति चन्द्रप्रभचरित में जैन धर्म के अनुसार। अथ च अश्वघोष की भाँति वीरनन्दी को भी शान्तरस अभिप्रेत है। इसी आधार पर जान पड़ता है कि वीरनन्दी अश्वघोष से अधिक प्रभावित रहे। चन्द्रप्रभचरित में वर्णित चन्द्रप्रभ का जीवनवृत्त अतीत और वर्तमान की दृष्टि से दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। प्रारम्भ के पन्द्रह सर्गों में अतीत का और अन्तिम तीन सर्गों में वर्तमान का वर्णन है। इसलिए अतीत के वर्णन से वर्तमान का वर्णन कुछ दब-सा गया है। चन्द्रप्रभ की प्रधान पत्नी का नाम कमलप्रभा है। नायिका होने के नाते इनका विस्तृत वर्णन होना चाहिए था, पर केवल एक (१७,६०) पद्य में इनके नाममात्र का ही उल्लेख किया गया है। इसी तरह इनके पुत्र वरचन्द्र की भी केवल एक (१७,७४) पद्य में ही नाममात्र की चर्चा की गयी है। दोनों के प्रति बरती गयी यह उपेक्षा खटकने वाली है। दूसरे सर्ग में की गयी दार्शनिक चर्चा अधिक लम्बी है। इसके कारण कथा का प्रवाह कुछ अवरुद्ध-सा हो गया है। इतना होते हुए भी कवित्व की दृष्टि से प्रस्तुत महाकाव्य प्रशंसनीय है। क्लिष्टता और दूरान्वय के न होने से इसके पद्य पढ़ते ही समझ में आ जाते हैं। इसकी सरलता रघुवंश और बुद्धचरित से भी कहीं अधिक है। १३. महाकवि वीरनन्दी का परिचय चन्द्रप्रभचरित के अन्त में मुद्रित ग्रन्थकार की प्रशस्ति (श्लोक १-४) से उनका निम्नलिखित परिचय प्राप्त होता है४ (क) संघ और गण- ग्रन्थकार वीरनन्दी ‘नन्दी' संघ के ‘देशीय' गण में हुए हैं। मूल संघ अर्थात् दिगम्बर सम्प्रदाय की चार शाखाएँ हैं- (१) नन्दी, (२) सिंह, (३) सेन और (४) देव। इन शाखाओं की प्रतिशाखाएँ गण, गच्छ आदि नामों से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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