SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६ पदयमक_सेना सेना यती बद्धराजिराजिसमुत्सुका। चक्रे चक्रेषुखङ्गाखसारा सारातिसाध्वसम्।। १५,२० यहाँ संयुतावृत्तिमूलक प्रतिपादादि पदयमक है। पदयमकवणिक्पथस्तूपितरलसंचयं समस्ति तस्मिन्नथ रत्नसंचयम्। पुरं यदालानितमत्तवारणैर्विभाति हम्यैश्च समत्तवारणैः।।१,२१ यहाँ अयुतावृत्तिमूलक प्रत्यर्धभागभिन्न पादान्त्य पदयमक है। पदयमक - यथा पलाशास्तत्रेश शोभन्ते नवकिंशुकैः। तथैव जम्बूतरवो विराजन्ते न किंशुकैः।।२,१७ यहाँ अयुतावृत्तिमूलक पद्यार्धान्त्य पदयमक है। पदयमक - भयात् पलायमानस्य कामस्य गलितः करात्। बाणावलिरिवाभाति बाणावलिरितस्ततः।।२,२० यहाँ अयुतावृत्तिमूलक तृतीय-चतुर्थ पादादिगत पदयमक है। पदयमक तत्र शासति महीं जनतायास्त्रातरि क्रमसरोजनतायाः। मोदयन्मधुरभून्मधुपानां संततिं कृतगलन्मधुपानाम्।। ८, १ यहाँ अयुतावृत्तिमूलक प्रथम-द्वितीय-तृतीय-चतुर्थपादान्तगत पदयमक है। चन्द्रप्रभचरित के आठवें, चौदहवें तथा पन्द्रहवें सर्ग में ऐसे ही उदाहरण और भी हैं। वर्णयमक- सपौरः ससुहृद्वर्गः सकलत्रः सबान्धवः । सतनूजः ससामन्तः स चचाल ससैनिकः।। २,३० यहाँ अयुतावृत्तिमूलक आद्यन्त वर्णयमक है। एकाक्षरचित्र- रैरोरा रैररैरेरी रोरो रोरुररेररि रुरूरूरुरुरूरूरोरारारीरैरुरोररम्।।१५,३९ आदि से अन्त तक केवल 'र' व्यञ्जन के होने से यहाँ एक व्यञ्जनचित्र या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy