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क्षोणीनाथो विनिहितमहामङ्गलद्रव्यशोभं प्रापत्तेजोविजिततपनो मन्दिरद्वारदेशम् । ।७,११
यहाँ व्यञ्जनों की अनेक बार आवृत्ति होने से वृत्त्यनुप्रास और आनुनासिक वर्णों की आवृत्ति के कारण श्रुत्यानुप्रास भी है। इनके अतिरिक्त लुप्तोपमा (अर्थालङ्कार) भी विद्यमान है।
श्रुत्यनुप्रास
नयेन नृणां विभवेन नाकिनां गतस्पृहाणां विनयेन योगिनाम् ।
महीभुजामेष निजेन तेजसा तनोति चित्ते सततं चमत्कृतिम् । । ११,५२
आनुनासिक वर्णों की आवृत्ति होने से यहाँ श्रुत्यनुप्रास है और उत्तरार्ध में 'त' की अनेक बार आवृत्ति होने से वृत्त्यनुप्रास भी । इनके अतिरिक्त दीपक (अर्थालङ्कार) भी है।
अन्त्यानुप्रास
मानोन्मादव्यपनयचतुराश्चैत्रारम्भे विदधति मधुराः ।
यूनामस्मिन् घटितयुवतयो दूतीकृत्यं परभृतरुतयः । । १४, ३०
पूर्वार्ध के चरणों में 'रा:' और उत्तरार्ध के दोनों चरणों के अन्त में 'तय' की आवृत्ति होने से यहाँ अन्त्यानुप्रास है। अथवा
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सहसैव समुद्भिद्य सुस्रुवे करिणां कटैः ।
भेजे कोऽपि महोत्साहो रोमाञ्चकवचैर्भटैः : ।।१५,२९
पूर्वार्ध और उत्तरार्ध के अन्त में 'टै:' की आवृत्ति होने से यहाँ अन्त्यानुप्रास है।
पदयमक
भूरिभैरवधीराया रुष्ठैः प्रतिगजश्रुतेः
भूरिभैरवधीरायाः समदानैः स्वपाणिना । ।१५,१०
यहाँ प्रथम और तृतीय चरणों में अयुतावृत्तिमूलक पादयमक है। यहाँ विसर्गकृत दोष नहीं है, जैसा कि वाग्भटा० (१,२०) में बतलाया गया है।
पादयमक
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शस्त्रप्रहारैर्गुरुभिः समुदा येन योजितः । तेनामर्षात् पुनः सोऽस्त्रसमुदायेन योजितः ।।१५,४५
यहाँ द्वितीय तथा चतुर्थ चरण में अयुतावृत्तिमूलक पदयमक है।
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