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________________ ४८ चन्द्रप्रभचरित का तुलनात्मक अध्ययन- रघुवंश, किरातार्जुनीयम्, माघ् और नैषधीयचरित - इन चार महाकाव्यों की विद्वत्संसार में विशेष ख्याति है । यहाँ इन्हीं के साथ चन्द्रप्रभचरित के कुछ अंशों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत है । १. मङ्गलाचरण - किरात, माघ और नैषध का प्रारम्भ वस्तुनिर्देश से हुआ है। इसी में मङ्गलाचरण की कल्पना की गयी है, जैसा कि उनकी टीकाओं से ज्ञात होता है। रघुवंश में कालिदास ने नमस्कारात्मक मङ्गलाचरण किया है। इसमें उन्होंने अपने आराध्य पार्वती और परमेश्वर (शिवजी) का अभिवादन किया है। इसका मुख्य उद्देश्य शब्द अर्थ का ज्ञान प्राप्त करना है। वीरनन्दी ने जगत्कल्याण के उद्देश्य से चन्द्रप्रभचरित के प्रथम पद्य में ऋषभदेव को, लोकशान्ति के उद्देश्य से द्वितीय पद्य में चन्द्रप्रभ को, आत्मशान्ति के उद्देश्य से तीसरे पद्य में शान्तिनाथ को और विशिष्ट गुणों की प्राप्ति के उद्देश्य से चौथे पद्य में महावीर को नमस्कार किया है। मङ्गलाचरण के इन पद्यों से अभिव्यक्त उदात्तभावना की दृष्टि से वीरनन्दी कालिदास, भारवि, माघ और श्रीहर्ष - इन चारों कवियों से आगे हैं। २. सज्जन - दुर्जनों का वर्णन - रघुवंश आदि चारों महाकाव्यों में सज्जन - दुर्जनों का वर्णन नहीं है, पर चन्द्रप्रभचरित ( १, ७-८ ) में है। इस प्रसङ्ग में एक मार्मिक बात यह भी द्रष्टव्य है कि वीरनन्दी ने दुर्जनों को भी गुरु मानकर नमन किया है । ८५ काव्येतर ग्रन्थ अपने नियत विषयों का ही प्रतिपादन करते हैं, पर काव्य की यह विशेषता है कि वह प्रसङ्गतः अन्यान्य विषयों पर भी प्रकाश डालता है। नीरस विषय भी काव्य के सम्पर्क से सरस बन जाते हैं। इसी दृष्टि से वीरनन्दी ने सज्जन- दुर्जनों का भी आकर्षक वर्णन किया है। ३. द्वीप वर्णन - चन्द्रप्रभचरित में कनकप्रभ आदि सभी राजाओं के अन्य वर्णन के साथ उनके द्वीपों की भी चर्चा की गयी है, पर रघुवंश आदि चारों महाकाव्यों में राजाओं के द्वीपों की, जिनके वे निवासी रहे, चर्चा नहीं है । चन्द्रप्रभचरित की भाँति उनकी भी कथावस्तु पौराणिक है, अतः पुराणों के आधार पर उनमें भी यह चर्चा दी जा सकती थी । ४. देश - पुर- वर्णन - चन्द्रप्रभचरित में मङ्गलावती आदि अनेक देशों एवं रत्नसञ्चय आदि पुरों का सजीव वर्णन द्रष्टव्य है। इनके वर्णन के प्राय: अन्तिम पद्यों में परिसंख्यालङ्कार में वहाँ की सामाजिक स्थिति पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है। जैसे२, १२२; २, १३८-३९ आदि। यह बात रघुवंश आदि चारों में नहीं है। ५. नायकवर्णन - महाकाव्य में उसके नायक का उत्कर्ष दिखलाना कवि का मुख्य लक्ष्य होता है। चन्द्रप्रभचरित में इसकी जितनी पूर्ति की गयी है, रघुवंश आदि Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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