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________________ ४९ चारों में दृष्टिगोचर नहीं होती । चन्द्रप्रभचरित में नायक का क्रमिक उत्कर्ष, पिछले सातवें जन्म से शुरू होता है जो चन्द्रप्रभ के भव में चरम सीमा तक पहुँचता है। वाग्भट, असग, वादिराज, हरिचन्द्र और अर्हद्दास आदि जैन महाकवियों ने अपने महाकाव्यों में इसी ढंग से नायकों का उत्कर्ष सिद्ध किया है। कादम्बरी में इसकी आंशिक झलक मिलती है, पर वह महाकाव्य में नहीं है। रघुवंश में दिलीप से लेकर अग्निवर्ण पर्यन्त राम की अनेक पीढ़ियों का वर्णन है, न कि उनकी भवावली का । माघ (१,४२-६८) में शिशुपाल के पिछले भवों का वर्णन है, पर वह नायक नहीं, प्रतिनायक है। कुमारसम्भव (१,२१) में पार्वती के पिछले भव का उल्लेख है, किन्तु वह भी नायक नहीं है। निष्कर्ष यह कि नायक का उत्कर्ष दिखलाने वाली भवावली जिस तरह चन्द्रप्रभचरित में वर्णित है, उस तरह रघुवंश आदि चारों में नहीं है । भवावली के वर्णन से महाकाव्य में पुराणत्व आ जायेगा, यह बात सर्वमान्य नहीं हो सकती। किसी भी व्यक्ति के वर्तमान जीवन के उत्कर्ष में उसके पिछले जन्मों की साधना का प्रभाव रहता है। वर्तमान जीवन की भी पिछली साधना उसके भावी उत्कर्ष का हेतु होती है- यह स्वाभाविक है। अतएव उत्तरपुराण के आधार पर चन्द्रप्रभचरित में नायक के पिछले छः भवों का जो वर्णन किया गया है, वह उस (चन्द्रप्रभचरित) के वैशिष्ट्य का परिचायक है। ६. नायिका वर्णन चन्द्रप्रभचरित में चन्द्रप्रभ की पत्नी के अतिरिक्त उनके पिछले जन्मों से सम्बद्ध सुवर्णमाला, श्रीकान्ता, अजितसेना आदि का भी वर्णन है। इनकी विशेषता यह है कि किसी का भी नखशिख वर्णन नहीं किया गया, सभी के शील आदि गुणों पर प्रकाश डाला गया है। इसके लिए चन्द्रप्रभचरित के १,५५; ३,१६ आदि पद्य द्रष्टव्य हैं। रघुवंश, माघ और किरात में मुख्य नायिकाओं का नाम मात्र का ही वर्णन है । नैषध दमयन्ती का नखसिख वर्णन है, न कि शील आदि का । अतः चन्द्रप्रभचरित का नायिका वर्णन प्रस्तुत चारों महाकाव्यों से विलक्षण है। ७. नायिकाओं की चेष्टाओं का वर्णन - किसी विशिष्ट व्यक्ति के आने पर उसे देखने के लिए स्वाभाविक कौतूहल ( वह इच्छा, जिसे रोका न जा सके) वश नायिकाओं में अनेक चेष्टाएँ उत्पन्न होती हैं। इनका सजीव चित्रण चन्द्रप्रभचरित (७, ८२-९०), रघुवंश (७,६-१२), माघ (१३, ३१-४८) और नैषध (१६, १२६-१२७) द्रष्टव्य है । किरात में इस प्रसङ्ग के पद्य दृष्टिगोचर नहीं हुए। इस प्रसङ्ग का चन्द्रप्रभचरित (७,८७) का पद्य अत्यन्त सुन्दर है, जिसका भाव है— कोई अन्य नायिका अंगुलियों अंगुलियाँ मिलाकर दोनों बाहुओं को अपने सिर पर रखकर जमुहाई लेने लगी, जिससे वह ऐसी जान पड़ी मानो सम्राट् अजितसेन को देखकर हृदय में प्रवेश करने वाले कामदेव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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