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शेष विषमताओं के विषय में सम्भव है वीरनन्दी के सामने कोई अन्य आधार रहा हो। जो कुछ भी हो, तुलनात्मक सूक्ष्म अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि चन्द्रप्रभचरित की कथावस्तु का मुख्य आधार उपलब्ध पुराणों में उत्तरपुराण ही है। (४) चन्द्रप्रभचरित की प्रासङ्गिक कथाएँ
(१) सुनन्दा का निदान- सुगन्धि देश के श्रीपुर नगर में देवाङ्गद वणिक् रहता था, जिसकी पत्नी का नाम श्री और पुत्री का नाम सुनन्दा था। किसी दिन वह एक गर्भवती नवयुवती के श्रीहीन शरीर को देखकर जन्मान्तर में भी युवावस्था के प्रारम्भ में उस जैसी न होने का निदान बाँध लेती है और आजीवन गृहस्थधर्म का परिपालन करती है। मृत्यु के पश्चात् यह सौधर्म स्वर्ग में देवी होती है। वहाँ से चयकर राजा दुर्योधन की पुत्री तथा राजा श्रीषेण की पत्नी श्रीकान्ता होती है। पिछले जन्म के अशुभ निदान के कारण उसे प्रारम्भिक नवयौवना में सन्तान की प्राप्ति नहीं होती। (चन्द्रप्रभचरित ३,५३-५५)
(२) दो किसान- सुगन्धि नामक एक देश था। उसमें किसी समय राजा श्रीषेण का शासन रहा। उनके शासनकाल में उन्हीं की राजधानी- श्रीपुर में दो किसान गृहस्थ रहते थे। उनमें से एक का नाम शशी था और दूसरे का सूर्य। शशी ने किसी दिन सेंध लगाकर सूर्य का सारा धन चुरा लिया। पता लगने पर राजा ने बरामद हुआ धन सूर्य को दिलवाया और शशी को प्राणदण्ड। चोरी करने से शशी नाना कुयोनियों के दुःख भोगकर चण्डरुचि नामक असुर होता है और सूर्य सत्कर्म करने से योनियों के सुख भोगकर हिरण्य नामक देव (चन्द्रप्रभचरित ६,३३-३५) इन कथाओं का स्रोत उत्तरपुराण में नहीं है। ५. चन्द्रप्रभचरित में सैद्धान्तिक विवेचन
वीरनन्दी ने चन्द्रप्रभचरित के अन्तिम सर्ग में भ० चन्द्रप्रभ की दिव्य देशना का प्रसङ्ग पाकर जिन सैद्धान्तिक विषयों का विवेचन किया है, उनमें मुख्य हैं-सात तत्त्व, नौ पदार्थ, छः द्रव्य, चार गतियाँ, आठ कर्म, बारह तप, चार ध्यान, रत्नत्रय और चौंतीस अतिशय। इस विवेचन से अभिव्यक्त होता है कि वीरनन्दी सिद्धान्तविद् भी रहे। इस विवेचन का आधार कुन्दकुन्द साहित्य, तत्त्वार्थसूत्र और उसके व्याख्याग्रन्थ आदि हैं, न कि उत्तरपुराण। ६. चन्द्रप्रभचरित में तत्त्वोपप्लव आदि इतर दर्शनों की आलोचना
__ चन्द्रप्रभचरित (२,४३-११०) में तत्त्वोप्लव दर्शन की विस्तृत आलोचना की गयी है और इसी के प्रसङ्ग से चार्वाक, सांख्य, न्याय-वैशेषिक, बौद्ध और मीमांसा दर्शनों की भी। - तत्त्वोपप्लव दर्शन की मान्यता है कि विचार करने पर लोक प्रसिद्ध
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