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________________ ४५ पृथ्वी आदि तत्त्व भी जब सिद्ध नहीं किये जा सकते तब (जैन दर्शन-मान्य) अन्य तत्त्वों की तो बात ही क्या है; (क्योंकि वे सभी बाधित हैं) --- 'पृथिव्यादीनि तत्त्वानि लोके प्रसिद्धानि, तान्यनि विचार्यमाणानि न व्यवतिष्ठन्ते किं पुनरन्यानि? -- तत्त्वोपप्लवसिंह, पृ०१। चार्वाक दर्शन देह को ही आत्मा मानता है, जो उसी के साथ उत्पन्न होता है और उसी के साथ समाप्त भी हो जाता है— जन्मान्तर ग्रहण नहीं करता। सांख्यदर्शन आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है, पर वह उसे कूटस्थनित्य और अकर्ता बतलाता है। न्याय-वैशेषिक दर्शन आत्मा को जड़ मानता है- आत्मा स्वयं ज्ञानवान नहीं है, ज्ञान के समवाय से ज्ञानवान् है। मीमांसा दर्शन को मोक्ष के विषय में विप्रतिपत्ति है (चन्द्रप्रभचरित २,९०)। चन्द्रप्रभचरित की संस्कृत टीका से इसके दो अर्थ प्रतिफलित होते हैं- १. मीमांसा दर्शन के आचार्यों को मोक्ष के विषय में विवाद है और २. मोक्ष नहीं है। दोनों अर्थ सङ्गत हैं। १. महर्षि जैमिनीय ने अपने सूत्रों में मोक्ष की चर्चा नहीं की। इनके उत्तरवर्ती भट्ट और प्रभाकर के मोक्ष के मन्तव्यों में वैषम्य है। २. नित्य कर्मों का अनुष्ठान ही मोक्ष है- नियोगसिद्धिरेव मोक्षः- प्रकरणपञ्जिका, पृ० १८८-१९०। जैमिनीयसम्मत मोक्ष का लक्षण लिखते हुए सोमदेवसूरि ने कहा है- कोयला और कज्जल की भाँति स्वभावत: मलिन चित्तवृत्त कभी शुद्ध नहीं हो सकती- यशस्तिलक, उत्तरार्ध २६९। बौद्धधर्म ज्ञान की धारा को ही आत्मा मानता है। इस तरह उक्त दर्शनों की मान्यताओं की वीरनन्दी ने समालोचना की है। इसकी विशेष जानकारी के लिए पाठक प्रस्तुत ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद और 'तत्त्वसंसिद्धिः' देख लें। इस प्रसङ्ग को आद्योपान्त पढ़कर वीरनन्दी के दार्शनिक वैदुष्य का अनुमान लगाया जा सकता है। (७) चन्द्रप्रभचरित की जैन व जैनेतर ग्रन्थों से तुलना (अ) जैन ग्रन्थ (१) आचार्य कुन्दकुन्द (ई० की पहली शती) और वीरनन्दी चं०च० - १८,६९,१८,६८;१८ . पञ्चस्तिकाय - ८५ ६;१८,७८-७९ नियमसार - ३४,१६,२०-२४. (२) आचार्य उमास्वामी (वि० १-३ शती) और वीरनन्दी चं०च० - १८,२,१८,७-८ तत्त्वार्थसूत्र – १,४; ३,१ (३) पूज्यपादस्वामी (वि० ५वीं शती) और वीरनन्दी चं०च० – १८,४,१८,२-३५०-५१; सर्वार्थसिद्धि – १,४; १,४ १८,१२५-१२७ पृ. ३ (ज्ञानपीठ संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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