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________________ ३७ हो जाता है। इसके पश्चात् वह तैरना, हाथी-घोड़े पर सवारी करना आदि विविध कलाओं में प्रवीण हो जाता है। विवाह संस्कार– वयस्क होते ही महासेन उनका विवाह संस्कार करते हैं, जिसमें सभी राजे-महाराजे सम्मिलित होते हैं। राज्य-संचालन-पिता के आग्रह पर चन्द्रप्रभ राज्य संचालन स्वीकार करते हैं। इनके राज्यकाल में प्रजा सुखी रही, किसी का अकाल मरण नहीं हुआ, प्राकृतिक प्रकोप नहीं हुआ तथा स्वचक्र या परचक्र से कभी कोई बाधा नहीं हुई। दिन-रात्रि के समय को आठ भागों में विभक्त करके वे दिनचर्या के अनुसार चलकर समस्त प्रजा को नयमार्ग पर चलने की शिक्षा देते रहे। विरोधी राजे-महाराजे भी उपहार ले-लेकर उनके पास आते और उन्हें नम्रतापूर्वक प्रणाम करते रहे। इन्द्र के आदेश पर अनेक देवाङ्गनाएँ प्रतिदिन उनके निकट गीत-नृत्य करती रहीं। अपनी कमला आदि अनेक पत्नियों के साथ वे चिरकाल तक आनन्दपूर्वक रहे। वैराग्य- किसी दिन एक वृद्ध लाठी टेकता हुआ उनकी सभा में जाकर दर्दनाक अब्दों में कहता है- 'भगवन्! एक निमित्तज्ञानी ने मुझे मृत्यु की सूचना दी है। मेरी रक्षा कीजिए, आप मृत्युञ्जय हैं, अत: इस कार्य में सक्षम हैं।' इसके बाद वह अदृश्य हो जाता है। चन्द्रप्रभ समझ जाते हैं कि यह वृद्ध के वेष में देव आया था, जिसका नाम था धर्मरुचि। इसी निमित्त से वे भोगों से विरक्त हो जाते हैं२८ और दीक्षा लेने का निश्चय करते हैं। इतने में ही वहाँ लोकान्तिक देव आ जाते हैं और 'साधु' 'साधु' कहकर उनके वैराग्य की सराहना करते हैं। इसके उपरान्त ही वे अपने पुत्र वरचन्द्र को राज्य सौंप देते हैं। तप-- तत्पश्चात् इन्द्र और देव चन्द्रप्रभ को 'विमला' नाम की शिविका में बैठाकर सकलर्तु२९ वन में ले जाते हैं, जहाँ वे (पौष कृष्णा एकादशी के १ दिन) दो उपवासों का नियम लेकर सिद्धों को नमन करते हुए एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा लेकर तप करते हैं। इसी अवसर पर वे पाँच दृढ़ मृष्टियों से केश लुञ्चन करते हैं। देवेन्द्र और देव मिलकर तप कल्याण का उत्सव मनाते हैं और उन केशों को मणिमय पात्र में रखकर क्षीरसागर में प्रवाहित करते हैं। पारणा- नलिनपुर३२ में राजा सोमदत्त३ के यहाँ वे पारणा करते हैं। इसी अवसर पर वहाँ पाँच आश्चर्य प्रकट होते हैं। कैवल्य प्राप्ति- घोर तप करके वे शुक्लध्यान का अवलम्बन लेकर (फाल्गुन कृष्णा सप्तमी के दिन) कैवल्य- पूर्णज्ञान की प्राप्ति करते हैं। समवसरण- कैवल्य प्राप्ति के पश्चात् इन्द्र का आदेश पाकर कुबेर साढ़े आठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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