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दिन माली द्वारा श्रीधर मुनि के पधारने के शुभ समाचार सुनकर पद्मनाभ उनके दर्शनों के लिए मनोहर उद्यान में जाता है। दर्शन करने के पश्चात् वह उनके आगे अपनी तत्त्वजिज्ञासा प्रकट करता है । वे तत्त्वोपप्लव आदि दर्शनों के मन्तव्यों की विस्तृत मीमांसा करते हुए तत्त्वों के स्वरूप का निरूपण करते हैं । उसे सुनकर पद्मनाभ का संशय दूर हो जाता है। इसके पश्चात् पद्मनाभ के पूछने पर वे उसके पिछले चार भवों का विस्तृत वृत्तान्त सुनाते हैं। इस वृत्तान्त की सत्यता पर कैसे विश्वास हो ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए मुनिराज ने कहा- 'राजन्! आज से दसवें दिन एक मदान्ध हाथी अपने झुण्ड से बिछुड़कर आपके नगर में प्रवेश करेगा। उसे देखकर मेरे कथन पर विश्वास हो जायगा।' इसके उपरान्त मुनिराज से व्रत ग्रहण कर वह अपनी राजधानी में लौट आता है। ठीक दसवें दिन एक मदान्ध हाथी सहसा राजधानी में घुसकर उपद्रव करने लगता है। पद्मनाभ उसे अपने वश में कर लेता है और उस पर सवार होकर वनक्रीड़ा के लिए चल देता है। इसी निमित्त से उस हाथी का 'वनकेलि' नाम पड़ जाता है। क्रीड़ा के पश्चात् पद्मनाभ उसे अपनी गजशाला में बँधवा देता है । १९ राजा पृथ्वीपाल इस हाथी को अपना बतलाकर वापिस करवाना चाहता हैं। पद्मनाभ के इनकार करने पर दोनों में युद्ध छिड़ जाता है। युद्ध में पृथ्वीपाल मारा जाता है। इसके कटे सिर को देखकर 'पद्मनाभ को वैराग्य हो जाता है, फलतः यह श्रीधर मुनि से जिनदीक्षा लेकर सिंहनिष्क्रीडित आदि व्रतों व तेरह प्रकार के चारित्र का परिपालन करता हुआ घोर तप करता है। कुछ ही समय में वह द्वादशाङ्गश्रुत का ज्ञान प्राप्त करता है और सोलह कारण भावनाओं के प्रभाव से तीर्थङ्कर प्रकृति का बन्ध कर लेता है।
६. वैजयन्तेश्वर — आयु के अन्त में संन्यासपूर्वक भौतिक शरीर को छोड़कर पद्मनाभ वैजयन्त नामक अनुत्तर विमान में अहमिन्द्र होते हैं और तैंतीस सागरोपम आयु की अन्तिम अवधि तक वहाँ वे दिव्य सुख का अनुभव करते हैं।
७. तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ— इनका जन्मस्थान पूर्वदेश की चन्द्रपुरी १ है ।
माता-पिता- इनकी माता का नाम लक्ष्मणा २२ और पिता का नाम महासेन है । यह पट्टरानी थीं। इक्ष्वाकुवंशीय महासेन अनेकानेक गुणों की दृष्टि से अनुपम रहे । दिग्विजय के समय इन्होंने अङ्ग, आन्ध्र, औढ्र, कर्णाटक, कलिङ्ग, कश्मीर, कीर, चेटी, टक्क, द्रविण, पाञ्चाल, पारसीक, मलय, लाट और सिन्धु आदि अनेक देशों के नरेशों को अपने अधीन किया था ।
रत्नवृष्टि - दिग्विजय के पश्चात् चन्द्रपुरी में राजा महासेन के राजमहल में चन्द्रप्रभ के गर्भावतरण के छः मास पहले से जन्म दिन तक प्रतिदिन साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वृष्टि होती रही ।
गर्भशोधन आदि - रत्नवृष्टि को देखकर महासेन को आश्चर्य होता है,
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