________________
चण्डरुचि असुर हुआ। इसी वैर के कारण उसने आपका अपहरण किया। बरामद धनउसके स्वामी को वापिस दिलवा दिया। युवराज, वही शशी मरने के बाद हिरण्य नामक देव हुआ, जो इस समय आपसे बात कर रहा है।' १२
तत्पश्चात् युवराज विपुलपुर की ओर प्रस्थान करता है। वहाँ के राजा का नाम जयवर्मा, रानी का जयश्री और उसकी कन्या का शशिप्रभा था। महेन्द्र नामक एक राजा जयवर्मा से उसकी कन्या की मंगनी करता है, पर किसी निमित्तज्ञानी से उसे अल्पायुष्क जानकर वह स्वीकृति न दे सका। इससे क्रुद्ध होकर महेन्द्र जयवर्मा को युद्ध के लिए ललकारता है। युवराज जयवर्मा का साथ देता है और युद्ध में महेन्द्र को मार डालता है। इससे प्रभावित होकर जयवर्मा युवराज के साथ अपनी कन्या शशिप्रभा का विवाह करना चाहता है। इतने में विजया की दक्षिण श्रेणी के आदित्यपुर का धरणीध्वज जयवर्मा को सन्देश भेजता है कि वह अपनी कन्या का विवाह मेरे (धरणीध्वज के) साथ करे। इसके लिए जयवर्मा तैयार नहीं होता। फलत: भयङ्कर युद्ध छिड़ जाता है। पूर्वचर्चित हिरण्यदेव के सहयोग से युवराज अजितसेन धरणीध्वज को भी युद्धभूमि में स्वर्गवासी बना देता है। इसके उपरान्त जयवर्मा शुभमुहूर्त में युवराज अजितसेन के साथ अपनी कन्या का विवाह कर देता है। फिर उसके साथ अपने नगर की शोभा बदला है। वहाँ अजितंजय उसे अपना उत्तराधिकार सौंप देते हैं। चक्रवर्ती होने से वह चौदह रत्नों एवं नौ निधियों का स्वामित्व प्राप्त करता है। तीर्थङ्कर स्वयंप्रभ के निकट अजितंजय जिन दीक्षा ले लेता है और सम्राट के हृदय में सच्ची श्रद्धा (सम्यग्दर्शन) जाग उठती है। दिग्विजय में पूर्ण सफलता प्राप्त करके सम्राट अजितसेन राज्य का संचालन करने लगता है। किसी दिन एक उन्मत्त हाथी ने एक मनुष्य की हत्या कर डाली, इस दुःखद घटना को देखकर सम्राट को वैराग्य उत्पन्न हो जाता है, फलत: वह अपने पुत्र जितशत्रु को उत्तराधिकार सौंपकर शिवंकर१४ उद्यान में गुणप्रभ मुनि के निकट जिनदीक्षा ग्रहण कर लेता है और घोर तपश्चरण करता है।
४. अच्युतेन्द्र- घोर तपश्चरण करने से वह अच्युतेन्द्र हो जाता है। वहाँ वह बाईस सागरोपम आयु की अन्तिम अवधि तक दिव्यसुख का अनुभव करता है।
५. राजा पद्मनाभ- आयु समाप्त होने पर अच्युतेन्द्र अच्युत स्वर्ग से चयकर धातकीखण्डवर्ती मङ्गलावती देश के रत्नसंचयपुर में राजा कनकप्रभ१५ के यहाँ उनकी पट्टरानी सुवर्णमाला१६ की कुक्षि से पद्मनाभ नामक पुत्र होता है। किसी दिन एक बूढ़े बैल को दलदल में फँसकर मरते देखकर कनकप्रभ को वैराग्य हो जाता है। १७ फलत: वह अपने पुत्र पद्मनाभ को राज्य दे देता है और श्रीधर मुनि से जिनदीक्षा लेकर दुर्धर तप करता है। पिता के विरह से वह कुछ दिन दुःखी रहता है। फिर मन्त्रियों के प्रयत्न.. से वह अपने राज्य का संचालन करने लगता है। कुछ काल बाद अपने पुत्र को युवराज बनाकर वह अपनी रानी सोमप्रभास के साथ आनन्दमय जीवन बिताने लगता है। किसी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org