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________________ अंश है उदाहरणों का। उदाहरण प्राचीन जैन ग्रन्थों से लिए गए हैं। दो-चार उदाहरण जैनेतर ग्रन्थों से भी लिए गए जान पड़ते हैं। उदाहरणों के अन्वेषण में अजितसेन को घोर परिश्रम करना पड़ा है। अनेक अलङ्कारिकों ने पूर्ववर्ती आचार्यों के अलङ्कार ग्रन्थों को सामने रख कर उनके उदाहरणों की नकल टीपी है। इस पद्धति को विश्वनाथ कविराज ने भी अपनाया है, जो अठारह भाषाओं को जानते थे, कविराज विश्वनाथ ने काव्यप्रकाश को सामने रखकर साहित्यदर्पण का निर्माण किया था। अजितसेन ने इस पद्धति को अपनाना उचित नहीं समझा। प्रस्तुत ग्रन्थ की विशेषता- प्रस्तुत ग्रन्थ में आरम्भ से अन्त तक सरलता ओत-प्रोत है, जिससे पाठक को ग्रन्थ का हृदय समझने में कठिनाई का अनुभव नहीं करना पड़ता। सम्प्रति चन्द्रालोक, साहित्यदर्पण, काव्यप्रकाश, ध्वन्यालोक और रसगङ्गाधर इन पाँच ग्रन्थों का बहुत प्रचार है, किन्तु इनमें कवि शिक्षा तथा शब्दालङ्कारों का इतना सुन्दर वर्णन नहीं जितना अलङ्कारचिन्तामणि में अजितसेन ने किया है। उपमालङ्कार का विवेचन भी जो अजितसेन ने किया है वह उक्त पाँचों ग्रन्थों में नहीं मिलता। अलङ्कारशास्त्र के सभी ग्रन्थं एक दूसरे के पूरक हैं। अलङ्कारशास्त्र के अभ्यासी को अपनी जिज्ञासा की पूर्ति के लिए सभी ग्रन्थ अध्येतव्य हैं। अलङ्कारचिन्तामणिके अध्ययन के बिना आलङ्कारिकों की अलङ्कारविषयक चिन्ता दूर नहीं हो सकती. कुछ विशेषताओं का उल्लेख कविता का अभ्यास- जो कविता करना चाहते हैं, वे पहले छन्दों का अभ्यास करें। प्रथमत: जो भी दृष्टि के सामने हो, उसी का वर्णन छन्दों में करना चाहिए। जैसे(१) अम्भोभिः सम्भृतः कुम्भः शोभते पश्य भोः सखे! । दभ्रः शुभ्रपटो भाति सितिमानं प्रपश्य भोः।। पृ. २ मित्र, देखो यह जल से भरा हुआ घड़ा कैसा सुन्दर लग रहा है। यह पतला सफेद वस्त्र सुशोभित हो रहा है। मित्र, इसकी सफेदी तो देखो। (२) वधु रमेव भातीयं नरो भाति स्मरो यथा। उखा भात्यन्नपूर्णेयं सखा भाति विधूपमः।। पृ. २ यह दुलहिन लक्ष्मी सरीखी प्रतीत हो रही है, दूल्हा कामदेव-सा लग रहा है, अन्न से भरी हुई बटलोई अच्छी लग रही है और मित्र चन्द्रमा की भाँति सुशोभित हो रहा है। (३) शय्योत्थितः कृतस्नानो वराक्षतसमन्वितः। गत्वा देवार्चनं कृत्वा श्रुत्वा शास्त्रं गृहं गतः।। पृ० २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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