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. के प्रारम्भ में प्रस्तुत कृति के पद्यों को 'अलङ्कारसूत्र' लिखा है--
'वाग्भटकवीन्द्ररचितालंकृतिसूत्राणि किमपि विवृणोमि।
मुग्धजनबोधहेतोः स्वस्य स्मृतिजननवृद्धयै च।।' चिन्तयति न चूतलत्तां याति न जातिं न केतकों क्रमते।
कमललतालग्नमाना मधुपयुवा केवलं क्वणति।। ६. जयपुर की प्राचीन प्रति के अनुसार यह पद्य प्रक्षिप्त है। ७. द्रष्टव्य- जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ५, पृष्ठ १०६-१०८।
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