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________________ १६ गयीं। अलङ्कारचिन्तामणि, काव्यानुशासन (अभिनववाग्भट-कृत) और किरात आदि अनेक जैनेतर महाकाव्यों की संस्कृत टीकाओं में प्रस्तुत कृति के अनेक पद्य प्रमाणरूप से उद्धृत मिलते हैं। इससे प्रस्तुत कृति के व्यापक प्रचार और प्रभाव का आभास मिलता है। सन्दर्भ १. सोलङ्की नरेशों की वंशावली में जयसिंह के पिता का नाम कर्णदेव लिखा मिलता है। – चौलुक्यकुमारपाल' (ज्ञानपीठ प्रकाशन) पृष्ठ ६६. दुर्गाशङ्कर शास्त्री- 'गुजरातनो मध्यकालीन राजपूत इतिहास', पृष्ठ २५५ तथा लक्ष्मीशङ्कर व्यास, चौलुक्यकुमारपाल, पृष्ठ ६८. नाथूराम प्रेमी - 'जैन साहित्य और इतिहास', पृष्ठ ३२६-३३१ तथा कीथ- 'संस्कृत साहित्य का इतिहास', पृष्ठ ६४५ (डॉ० मङ्गलदेव शास्त्री द्वारा अनूदित, मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन)। ३. एक बड़े राज्य के महामात्य, महाकवि और महान् विद्वान् होने पर भी म (वाग्भट) की जीवन-गाथा बड़ी करुण है। इन्हें अपने महामात्यत्व का महामूल्य चुकाना पड़ा है। इनकी एक पुत्री थी, परमविदुषी, परमसुन्दरी और अपने पिता के सदृश कविप्रतिभाशालिनी। जब वह विवाह योग्य हुई तो उसे बलात् इनसे छीनकर (राजा जयसिंह के) राजप्रासाद की शोभा बढ़ाने के लिए भेज दिया गया। न वाग्भट इसके लिए तैयार थे और न कन्या। पर 'अप्रतिहता राजाज्ञा' के सामने दोनों को सिर झुकाना पड़ा। विदाई के समय की कन्या की इस उक्ति को जरा देखिए। कैसा चमत्कार है, तबियत फड़क उठती है। राजाप्रासाद के लिए प्रस्थान करते समय कन्या अपने रोते हुए पिता को सान्त्वना देते हुए कह रही है 'तात वाग्भट! मा रोदिहि कर्मणां गतिरीदृशी। दृष् धातोरिवास्माकं गुणो दोषाय केवलम्।।' व्याकरणप्रक्रिया के अनुसार दुष् धातु के गुण होकर 'दोष' पद बनता है। दुष् धातु के गुण का परिणाम ‘दोष' है। इसी प्रकार हमारे सौन्दर्य गुण का परिणाम यह अनर्थ है और अत्याचार रूप दोष है। इसलिए हे तात! आप रोइये नहीं, यह तो हमारे कर्मों का फल है कि दुष् धातु के समान हमारा गुण भी दोषजनक हो गया। - आचार्य विश्वेश्वर, काव्यप्रकाश, प्रस्तावना, पृष्ठ ८०. . ४. आमेर शास्त्रभण्डार, जयपुर की सर्वाधिक प्राचीन प्रति के प्रत्येक पत्र पर बांई ओर 'अलङ्कारसूत्रम्' लिखा मिलता है और सिंहदेवगणि ने इसकी संस्कृत टीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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