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________________ १८६ अयोध्या के शासनव्यवस्था की झलक भी मिलती है। दूसरी ओर सीता अकेली बैठकर अपने पिछले जीवन के बारे में विचारमग्न है। नवम सर्ग में वाल्मीकि रामायण की रचना कर चुके हैं तथा लव-कुश उसे वीणा पर गाने लगे हैं। मुनि सीता को निर्देश देते हैं। दूसरी ओर अयोध्या में अश्वमेध की तैयारी होती है और घोड़ा छोड़ा जाता है, जिसे वन प्रान्त में लव-कुश पकड़ लेते हैं। रक्षकों और शत्रुघ्न के काफी प्रयास के बावजूद हठी बच्चे उसे नहीं छोड़ते। दशम सर्ग में राम की सेना का लव-कुश के साथ तुमुल-युद्ध वर्णित है। राम की पूरी सेना लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न सहित युद्धभूमि में धराशायी हो जाती है और हनुमान को बांधकर लव-कुश सीता के पास ले जाते है। जहाँ सीता हनुमान को पहचान लेती हैं। सीता जाकर युद्धभूमि में वीरों को देखती हैं जो वहाँ मूच्छित पड़े हैं। लव-कुश उनकी बेहोशी दूर कर देते हैं। एकादश सर्ग में सेना घोड़े के साथ अवध लौट जाती है। अश्वमेध यज्ञ स्थल पर राम के पास सीता को वाल्मीकि लाते हैं, पर राम पुन: सीता से नगरजनों की शंका मिटाने को कहते हैं तब सीता राम के प्रति प्रेम की सौगन्ध खाकर पृथ्वी से प्रार्थना करती है और पृथ्वी से शेषनाग के फन पर दिव्य सिंहासनारूढ़ पृथ्वी आती है और सीता को लेकर पाताल में वापस चली जाती है। प्रस्तुत महाकाव्य में नौ रसों में से शृङ्गार, वीभत्स और हास्य रस का अभावं है। यद्यपि महाकाव्य के अन्य लक्षण मौजूद है। इसमें सर्गों में क्रमश: ३१, ८४, ५३, ८३, ५७, ५०, ५७, ३०, ६०, ५१ और ४८५९४ पद्य हैं। प्रत्येक सर्ग में अलग-अलग एक-एक छन्दों में पद्यों की रचना की गयी है। मुद्रण, सज्जा, कागज आदि उत्तम है। पुस्तक सभी के लिये पठनीय और मननीय है। ऐसे सुन्दर काव्य के प्रणयन और उसके प्रकाशन के लिए रचनाकार बधाई के पात्र हैं। अतुल कुमार जिनागमों की मूल-भाषा, सम्पा०- आचार्यश्री विजयशीलचन्दसूरि एवं डॉ० के० आर०चन्द्र, प्रकाशक- प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, अहमदाबाद; प्रथम संस्करण १९९९ ईस्वी, पृष्ठ २३+२५०; आकार-डिमाई, मूल्य १२०/- रुपए। प्रस्तुत कृति २७-२८ अप्रैल १९९७ को अहमदाबाद में आयोजित विद्वत् संगोष्ठी में विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किये गये शोध-पत्रों का संकलन है। यह संगोष्ठी स्थानीय तीन संस्थाओं - प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, प्राकृत विद्या मण्डल एवं प्राकृत जैन विद्या विकास डि ने सम्मिलित रूप से आयोजित किया था। संगोष्ठी की आधारभूमि थीदिगम्बर परम्परा के एक समूह, खासकर कुन्दकुन्द भारती से प्रकाशित होने वाली त्रैमासिक पत्रिका प्राकृत विद्या और उसके सम्पादक डॉ० सुदीप जैन द्वारा विभिन्न आधारों पर यह स्थापित किया जाना कि शौरसेनी प्राकृत अर्धमागधी से प्राचीन थी और आगमों की मूलभाषा शौरसेनी थी। इस समूह द्वारा यह भी प्रतिपादित किया गया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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