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________________ १८५ कल्लोल प्रकाशन, सीतायन, रचनाकार- डॉ० मंगलाप्रसाद; प्रका०सुसुवाही, वाराणसी १९९९ ई०; प्रथम संस्करण; आकार-डिमाई, पृष्ठ ६ + ८८; पक्की जिल्द; मूल्य- एक सौ रुपये । - भारत के प्राचीन वाङ्मय से प्रायः उपेक्षित पात्रों को खोजकर उनके वास्तविक चरित्र को समाज में साहित्य के माध्यम से उजागर करने वाले साहित्यकारों की एक धारा रही है। भारतीय संस्कृति की दो महान परम्पराओं - ब्राह्मण और बौद्ध के नारी पात्रों का समुचित संस्करण इसी क्रम में चला। हिन्दी साहित्य में रामायण की एक ओझल किन्तु अति उत्कृष्ट पात्र 'उर्मिला' और गौतम बुद्ध की परिणीता यशोधरा के अन्तर्मन को समाज के सम्मुख राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी कालजयी रचनाओं क्रमश: 'साकेत' और 'यशोधरा' के माध्यम से खड़ा कर दिया है। रामायण की प्रमुख स्त्री पात्र 'सीता' को लेकर तो भारतीय साहित्य जगत् सदा आन्दोलित रहा है। चाहे वे वाल्मीकि, भवभूति, कालिदास और भास हों या परवर्ती भक्तिकाल के गोस्वामी तुलसीदास । सबने अपने-अपने ढंग से सीता के चरित्र और उनके पति 'राम' के व्यवहार को चित्रित किया है। नारी की अन्तर्व्यथा और उसके मन को समझने की जो कोशिश गुप्त जी ने की हैं, शायद उससे पहले किसी ने नहीं किया। इसी परम्परा में डॉ० मंगलाप्रसाद द्वारा रचित हिन्दी का महाकाव्य 'सीतायन' है। सीतायन में कुल ग्यारह सर्ग हैं। प्रथम सर्ग में पूरे काव्य का बीज रूप भूमिका है । द्वितीय सर्ग में सीता लंका से वापस आये राम का अपने प्रति बेरूखी पर चिन्तित है। इस समय वह गर्भवती भी है। तृतीय सर्ग में नगरवासियों का सीता के प्रति शंकालु दृष्टि तथा सीता के भावी संकट की कल्पना और दूसरी ओर राजभवन में राम और सीता की दिनचर्या तथा प्रेम की चर्चा है। चतुर्थ सर्ग में वसन्त ऋतु की छटा का वर्णन है तथा सर्ग के उत्तरार्द्ध में लोकापवाद के कारण सीता के निर्वासन का आदेश दिया जाता है। इस कठोर आदेश का पालन करते हुए दुःखी मन से लक्ष्मण सीता को वन में ऋषि आश्रम के पास छोड़ आते हैं। पञ्चम सर्ग में वन की सुरम्यता का वर्णन है । सीता अकेली सोच में डूबी हुई है जब बटुकगण उसे बुलाकर ऋषि आश्रम में ले जाते हैं । । षष्ठ सर्ग में आश्रम में सीता की दिनचर्या तथा आश्रम के दैनन्दिनी कार्यों में व्यस्तता दिखाया गया है, वहीं उसने युगल पुत्रों को जन्म दिया है। बालकों के बालक्रीड़ा आदि का भी वर्णन है। सप्तम सर्ग में शरद ऋतु का आगमन होता है, बच्चे बड़े हो रहे हैं। इसमें बटुकगण के अध्ययन और आश्रम की सुचारु व्यवस्था का वर्णन है । अष्टम सर्ग में अयोध्या में सीताविहीन राम का सन्ताप दीखता है। उन पर व्यंग्य प्रहार भी *किये गये हैं, जैसे— प्राणवल्लभा को घर से कर बाहर राघव शान्त हुए हैं। प्रिय पुरजन को जीवन-मरु की सुधा लुटा अक्लान्त हुए हैं इत्यादि । यहाँ रघुकुल की परम्परा और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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