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निवासस्थान मेवाड़ था। ये अपने समय के बहुत बड़े धनिक व्यापारी और उच्चकोडि के लेखक या महाकवि थे। इन्होंने अनेक महाकाव्य रचे थे। इन्होंने अपना परिचय काव्यानुशासन के प्रारम्भ में दिया है।
काव्यानुशासन सूत्र शैली में रचा गया छोटा, किन्तु महत्त्वपूर्ण अलंकार ग्रन्थ है। इसके पाँच अध्यायों में क्रमशः ६२, ७५, ६८, २६ और ५८ कुल - २८९ सूत्र हैं। सूत्रों के ऊपर वाग्भट ने स्वयं 'अलंकारतिलकवृत्ति' नाम की टीका रची है। सूक्ष्म दृष्टि से ग्रन्थ देखने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि वाग्भट हेमचन्द्र से बहुत प्रभावित थे। वे उन्हें अपना समझते थे, अतः उनके ग्रन्थ का नाम (काव्यानुशासन), सूत्र शैली और कुछ सूत्र तथा कुछ टीका का अंश भी उन्होंने अपने ग्रन्थ में ले लिया है।
ग्रन्थ बहुत सरल है। इसमें अलंकार सम्बन्धी सभी तत्त्वों पर प्रकाश डाला गया है । जो बात सूत्रों में नहीं कही जा सकी, वह टीका में कह दी गयी है । टीका बहुत महत्त्वपूर्ण है।
हेमचन्द्र ने ध्वनि का समर्थन जोरदार शब्दों में किया है, किन्तु वाग्भट ने उसे 'पर्यायोक्त' अलंकार में गर्भित किया है। सभी अलंकार ग्रन्थों में काव्यों से उदाहरण लिये गये हैं, किन्तु वाग्भट ने दोष प्रकरण में मम्मट और दण्डी आदि के अलंकार ग्रन्थों के मंगलाचरण के पद्यों को उद्धृत कर उनमें दोष बतलाये हैं।
काव्यालंकारसार- इस ग्रन्थ के प्रणेता भावदेवसूरि हैं। इनका समय विक्रम की पन्द्रहवीं शती का प्रथम चरण है। इसकी सूचना स्वयं इन्होंने अपने पार्श्वनाथचरितमहाकाव्य की प्रशस्ति में दी है।
काव्यालंकारसार में आठ अध्याय हैं, जिनमें क्रमशः ५+१५+२४+१३+१३+ ४९+५+८=१३२ श्लोक हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ में काव्य का स्वरूप, हेतु, फल (१) शब्दार्थस्वरूप, (२) शब्दार्थदोष, (३) गुण, (४) शब्दालंकार, (५) अर्थालंकार, (६) रीति, (७) और रस, (८) इन साहित्यिक तत्त्वों पर संक्षिप्त और सारगर्भ प्रकाश डाला गया है।
आचार्य भावदेवसूरि ने अपने पूर्ववर्ती सभी आचार्यों के अलंकार ग्रन्थों का गम्भीर चिन्तन कर प्रस्तुत ग्रन्थ बनाया है। अभी तक प्रकाशित हुए अलंकार ग्रन्थों में इतना सरल और सरस ग्रन्थ मेरे देखने में नहीं आया। अलंकारशास्त्र के अध्ययन करने वालों को सबसे पहले यही ग्रन्थ पढ़ना चाहिए।
इन ग्रन्थों के अतिरिक्त कुछ और भी जैन- अलंकार ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं, किन्तु वे इस समय सामने नहीं हैं, अतः उनके बारे में यहाँ कुछ नहीं लिखा जा सकता। अनेक जैन विद्वानों ने जैनेतर अलंकार ग्रन्थों पर महत्त्वपूर्ण टीकाएँ रची हैं।
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