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________________ १३९ नहीं है अपित उस विद्वत्तारूप ज्ञानराशि को छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत कर उसे हृदयङ्गत करा देना ही सफल अध्यापन है और यह गुण पूज्य पण्डित जी में कूट-कूट कर भरा है। हमारा यह परम सौभाग्य है कि आज भी हमें पूज्य पण्डित जी का सान्निध्य प्राप्त है। सम्मान के इस अवसर पर हम उनके चरणों में अपनी विनयाञ्जलि समर्पित करते हुए उनके दीर्घायुष्य की मङ्गलकामना करते हैं। सरल व्यक्तित्व श्री पारसमल भण्डारी ८३ वर्षीय मनीषी श्री पण्डित अमृतलाल जी जैन का अभिनन्दन करते हुए अत्यन्त हर्ष हो रहा है। उनकी सरलता मनमोहनी है। आपका जन्म झांसी जिले के ग्राम बमराना में हुआ था। आपके पिताजी का नाम श्री बुद्धसेन जैन था। आपकी शिक्षा बमाना और मुरैना में हुई। सन् १९३४ में स्याद्वाद महाविद्यालय से जैनदर्शनाचार्य एवं जैन साहित्याचार्य की आपने परीक्षा पास की और सन् १९४४ से १९५९ तक उसी महाविद्यालय में जैनदर्शन एवं साहित्य के अध्यापक रहे। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में आप १९६० में जैन दर्शन के अध्यापक नियुक्त हुए और वहाँ से १९७९ में सेवानिवृत्त हुए इसके पश्चात् आचार्य तुलसी द्वारा स्थापित ब्राह्मणी विद्यापीठ लाडनूं में लगभग १८ वर्ष तक साधु-साध्वी एवं श्रमणियों को जैन धर्म और दर्शन की शिक्षा दी। भगवान पार्श्वनाथ से यही प्रार्थना की पण्डित जी का दीघार्य प्राप्त करे और उनकी धार्मिक भावनाओं की पूर्ति करे। अभिनन्दनमभिनन्दनीयस्य विश्वनाथमिश्रः नात्रमनागपि संशीतिलेशोऽपि यत् वाराणसेये पं.श्री अमृतलाल महोदये वर्तनो चेमे विलक्षणा: समेऽपिगुणाः। अयं खलु महानुभावः अधीती साहित्ये, पारदृश्वा जैनदर्शनस्य, अध्यापयिता पारेसहस्रं छात्राणाम्, उद्घाटयिता शास्त्रीय गूढरहस्यानाम् अग्रेसरो विदग्धानाम्, प्रसिद्ध; कवयिता, लेखको व्याख्याता, भाषकश्चेति प्रथितमेव चित्यशास्त्रावगाहन परितृप्तपरिष्कृतमतीनां विद्वद्वराणाम्। एवं गुणगणैः सम्पूजितः सारल्पप्रतिमूर्तिः, निर्दम्भताया: विमलं दर्पणम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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