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शास्त्री जी का कृतित्व संख्यात्मक दृष्टि से बहुत अधिक न होकर भी गुणात्मक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। आपके अनेक महत्त्वपूर्ण लेख संस्कृत कविता में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और अभिनन्दन ग्रन्थों में प्रकाशित हुए है। आप सदा से ही यश और आत्मश्लाघा से दूर रहकर अधिक कार्य करने, सादा और सरल जीवन जीने, सभी के हित की कामना रखने और स्वयं द्वारा किसी को किञ्चित भी कष्ट न हो- इस प्रकार की जीवन शैली में दृढ़ विश्वास और इसे चरितार्थ करने वालों में से एक हैं। जीवन के अनेक झंझावातों के बाद अब आप अस्सी वर्ष की इस वृद्धावस्था में चार तीथङ्करों से पवित्र इस · वाराणसी नगरी में पार्श्वप्रभु की जन्मभूमि के समीप कश्मीरीगंज स्थित अपने आवास पर स्वस्थ, प्रसन्न और सन्तुष्ट जीवन जी रहे हैं। आप इसी तरह दीर्घायु हों, यही हम सब की कामना है।
आदर्श प्राध्यापक पं० अमृतलाल जी शास्त्री
डॉ० कमलेश कुमार
श्रद्धेय पं० अमृलाल जी शास्त्री बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के रहे हैं। आपका सम्पूर्ण जीवन सादगी और ईमानदारी का एक आदर्श निदर्शन है आप काशी की जैन विद्वत्परम्परा के विद्वच्छिरोमणि तो हैं ही, साथ ही ब्राह्मण विद्वानों में भी आपकी गहरी पैठ है। छात्र जीवन से ही आप संस्कृत भाषा में सम्भाषण एवं संस्कृत कविता कहने में निपुण रहे है कभी भी और किसी भी विषय अथवा विद्वान् को लक्ष्य कर संस्कृत भाषा में कविता करना आप के आशुकवित्व का सूचक है।
जैन
पूज्य पण्डित जी ने काशीस्थ श्री स्याद्वाद महाविद्यालय में अध्ययन कर सर्वप्रथम अपनी इसी मातृसंस्था में साहित्य प्राध्यापक एवं तत्रस्थ श्री अकलङ्क सरस्वती भवन में पुस्तकालयाध्यक्ष के रूप में अपनी सेवायें दी हैं आपने अपने सतत् अध्यवसाय के फलस्वरूप जो गम्भीर ज्ञानार्जन किया उसे अपने अन्तेवासियों को समान रूप से वितरीत करने में कभी किसी भी प्रकार का संकोच नहीं किया जो भी अध्ययन करने की अभिलाषा से उनके पास गया उसे उन्होंने न केवल अध्ययन कराया, अपितु पुत्रवत् स्नेह देकर उसे सदा के लिये अपना भी बना लिया।
जब पूज्य पण्डित जी सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में जैनदर्शन विभागाध्यक्ष थे तब मैंने उनकी प्रेरणा से स्वतन्त्र परीक्षार्थी के रूप में जैनदर्शन विषय में आचार्य करने का संकल्प किया तो उन्होंने मुझे पाठ्यक्रम में निर्धारित ग्रन्थों को पढ़ाकर मेरा निरन्तर मार्गदर्शन किया। किसी भी व्यक्ति का केवल विद्वान् होना ही पर्याप्त
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