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________________ १३७ मधुर स्वभाव के धनी जय कृष्ण जैन पूज्य पण्डितजी से मेरा सम्पर्क लगभग ५० वर्ष पूर्व हुआ था। उनसे हमने जैन दर्शन और द्रव्यसंग्रह पढ़ा। पढ़ाने की उनकी शैली अत्यन्त रुचिकर थी। उनके व्यक्तित्व और स्वभाव से भी मैं आकर्षित हुआ। उनके इसी स्वभाव ने हमारे बीच एक पारिवारिक सम्बन्ध सा स्थापित कर दिया। विश्वविद्यालय में अध्यापक हो जाने के बावजूद उनकी दिनचर्या और कार्यशैली में कोई अन्तर नहीं आया, बल्कि उनका मधुर स्वभाव और भी मधुतर होता गया। वे एक शान्त परिणामी अध्यापक हैं और विवादों से सदा दूर रहे हैं। उनके प्रति मेरे पूज्य भाव हैं। उनको मेरा विनम्र अभिनन्दन। वे निरामय होकर शतायु हों यही प्रभु से प्रार्थना है। आत्मश्लाघा से दूर पण्डित जी डॉ० फूलचन्द्र जैन 'प्रेमी' सम्मान्य पं० अमृतलाल जी शास्त्री सादा जीवन उच्च विचार की प्रतिमूर्ति हैं। शिक्षा जगत् में आप अत्यन्त कुशल शिक्षक के रूप में लोकप्रिय हैं। जितना बन सके दूसरों का उपकार करें, अपकार की भावना का उदय स्वयं के विनाश का कारण हैइस सिद्धान्त पर आपका दृढ़ विश्वास ही नहीं, अपितु इसे अपने जीवन-व्यवहार का अंग भी बनाया है। ७ जुलाई १९१९ में बमराना (ललितपुर) में जन्में गुरुवर शास्त्री जी ने साढूमल, मुरैना और स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी में अध्ययन किया तथा १९४३ में जैन दर्शनाचार्य उत्तीर्ण कर वाराणसी में ही अध्यापन कार्य प्रारम्भ कर दिया। बाद में १९५९ में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में जैन दर्शन के प्राध्यापक होकर १९७९ तक कार्य किया। तत्पश्चात् १९७९ से १९९७ तक ब्राह्मी विद्यापीठ, लाडनूं में अपनी सेवायें दी। शास्त्री जी ने अपना सारा जीवन अध्ययन और अध्यापन में निकाला है। आज भी दोनों कार्य ही उनके धर्म बने हुए हैं। पत्नी के देहावसान के बाद मानसिक रूप से वे कुछ टूटे से दिखे पर उनके सुपुत्र अशोक ने अपनी सेवा-सुश्रूषा से उन्हें स्वस्थ कर लिया। इस बीच उन्होंने चन्द्रप्रभचरित, भक्तामरस्तोत्र, संस्कृत काव्य रचना आदि द्वारा साहित्य को भी समृद्ध किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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