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________________ १३६ सहज ही लग जाते हैं। लौकिक चीजों के आकर्षण को दर्शन की पैनी धार से उन्होंने विच्छिन्न कर दिया और जीवन के इस स्रोत को साहित्य कीं मन्दाकिनी से जोड़ दिया। पं० जी जैन दर्शन के तो धुरन्धर विद्वान् हैं ही साथ ही अन्य भारतीय दर्शनों में मत्स्यवत् तैरने की उनमें क्षमता है। भारतीय प्राच्यविद्याओं के पुरोधा स्वनामधन्य पं० सुखलाल जी संधव जैसे ख्यात्नाम मनीषी के साथ आपने विभिन्न ग्रंथों के सम्पादन में सहयोग किया है ! उनकी शिष्य परम्परा के विद्वानों के साथ भी आपका नाम जुड़ा है। आप संस्कृत के उच्चकोटि के आशुकवि एवं छन्दः शास्त्र में अप्रतिहत गतिसम्पन्न विद्वान् हैं । सादा जीवन उच्चविचार के धनी आपमें क्षमा-मार्दव- आर्जव शौच-: - सत्य-संयमतप-त्याग- अकिंचन्य और ब्रह्मचर्य धर्म के ये दशों लक्षण मूर्तिमान होते हुए किसी भी द्रष्टा के मन को प्रभावित कर देते हैं। आपका संयममय जीवन आज के इस आपाधापी भरे इस युग में दूसरों के लिए प्रदीपवत् है । आपके अंतरंग और बहिरंग में द्वैतभाव नहीं है। मक्खन की भाँति जिस प्रकार आपका अन्तरंग निर्मल व उज्जवल है उसी प्रकार तन पर श्वेत चोला व धोती आपकी गौरवमयी आभा के अलंकरण हैं। पू० शास्त्री जी के तलस्पर्शी विद्वत्ता का अनुभव मुझे अनेक बार हुआ। वे सभी दर्शनों के कुशल अध्यवसयी और सरस हैं। उनका निश्छल स्वभाव आकर्षक है। मैं आपके दीर्घायु होने की कामना और शतश: अभिनन्दन करता हूँ । सरल और सरस व्यक्तित्व के धनी पं० उदयचन्द जैन जैन दर्शनाचार्य, साहित्याचार्य आदि अनेक उपाधियों के धारक श्रीमान् पं० अमृतलाल शास्त्री का व्यक्तित्व बहुत ही सरल एवं सरस है । उनसे हमारा परिचय सन् १९४० से रहा है जब मैं स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी में अध्ययनार्थ आया। छात्रों से आपका स्नेहपूर्ण सम्बन्ध रहता था । सदा हित-मितप्रिय बोलना, उन्हें पढ़ाना, संस्कृत में सम्भाषण करना, संस्कृत पद्य रचना करना आदि जैसे रचनात्मक कार्यों में ही वे लगे रहते थे। स्याद्वाद महाविद्यालय; जैन कालेज, विदिशा, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी एवं ब्राह्मी विद्यापीठ, लाडनूं में अध्यापन कार्य करने के बाद आप वाराणसी वापस आ गये और हम लोग पुनः पूर्ववत् मिलने लगे । अन्त में मेरी हार्दिक कामना है कि शास्त्री जी अनेक वर्षों तक स्वस्थ रहकर हम सब पर अपने मधुर स्नेह की वर्षा करते रहें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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