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संस्मरणों के वातायन में पं० अमृतलाल जैन ।
डॉ० आनन्द प्रकाश त्रिपाठी 'रत्नेश'
जब जब मेरे अन्तर्हदय में निष्काम एवं ऋजुमना व्यक्तित्वों की तस्वीर उभरती है तो उनमें अग्रणी नाम पं० अमृतलाल जैन, बनारस का आता है। मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूँ कि व्युत्पन्न प्रतिभा के धनी, विद्वत्वरेण्य पंडितजी के साथ लगभग आठ वर्ष तक ब्राह्मी विद्यापीठ, लाडनूं में कार्य करने का सुअवसर मुझे मिला।
जीवन में सादगी, विचारों में उर्वरता एवं सतयोग की प्रवृत्ति से आपूरित है उनका व्यक्तित्व। सरलता उनका शृङ्गार है और उपकार ही उनका लक्ष्य। विद्वानों के वे प्रेरणास्रोत हैं। सचमुच ज्ञान और विनयसम्पन्न उनका व्यक्तित्व सबके लिए अनुकरणीय है।
आदरणीय पण्डितजी ने जो कुछ भी मुझे कंठस्थ कराया वह मेरे पास उनकी अक्षुण्ण धरोहर के रूप में सुरक्षित है।
पुरातनधर्म-पण्डितजी दूसरों के लिए जीते हैं। दूसरों का हित सदैव ध्यान में रखते हैं। मुझे वह घटना याद आ रही है जब ब्राह्मी विद्यापीठ में एक प्राध्यापक की नियुक्ति हुई कुछ समय बाद उनकी शादी हुई। वे सज्जन शादी करने के लिए गये हुए थे तभी उनकी सेवाओं की जरुरत महसूस नहीं की गयी। यह बात किसी स्रोत से पण्डितजी को ज्ञात हुई। जानकारी होते ही पण्डितजी ने मुझे याद किया और प्रशासन द्वारा उस प्राध्यापक को हटाने की जानकारी मुझे भी दी। मुझे जानकारी ही इसलिए । दी कि मैं अपने स्रोतों से उस प्राध्यापक को बचाने का प्रयास करूँ। पण्डितजी ने मुझसे जैसा कहा मैंने वैसा ही किया और मुझे उन्हें बचाने में सफलता मिली। दूसरों के हित साधने के भी ऐसे अनेक उदाहरण मेरे सामने हैं जिसके आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि पण्डितजी ने तुलसीदास की उस पंक्ति को अपने जीवन में चरितार्थ किया था "परहित सरिस धर्म नहिं भाई।"
अनासक्त भाव से ब्राह्मी विद्यापीठ में सेवाएं देते हुए पण्डितजी के जिन गुणों से मैं बहुत अधिक प्रभावित हुआ उनमें एक है अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण। मध्यावकाश में प्रायः हम लोग चाय के साथ मिष्ठान और नमकीन मंगाते थे जो सभी को बराबर-बराबर वितरित किया जाता था किन्तु पण्डितजी का यह नियम था कि मिष्ठान और नमकीन में से एक ग्रास के बराबर रखकर सब हमलोगों में वितरित कर देते थे। मिष्ठान, नमकीन या अन्य किसी पदार्थ के प्रति कभी उनके मन में आसक्ति हुई हो, ऐसा कोई दृश्य ध्यान में नहीं है। लौंग खाने का उनका शौक था किन्तु प्रायः सबको लौंग खिलाकर ही स्वयं खाते थे। खान-पान का संयम उनका सदा अनुकरणीय रहा है।
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