________________
१२६
मानव के पैरों को कवच प्रदान करती है। गाय से बढ़कर मानव का उपकार करने वाला पशु इस विश्व में नहीं है। किन्तु खेद है कि आज उसकी बड़ी बुरी दुर्दशा है। गाय मनुष्य को अपना स्वस्व देकर जीवन देती है, पर मनुष्य उसे बदले में मौत देता है। यह कहाँ का न्याय है? __ भगवान् कृष्ण गायों को कितना महत्त्व देते थे। भगवान् शंकर ने अन्य वाहनों को छोड़कर नंदी को अपना वाहन बनाया। भगवान् ऋषभदेव ने बैल को अपने पादमूल में आश्रय दिया। राजा दिलीप ने नन्दिनी की सेवा में रहने के लिए इक्कीस दिन तक अपना राज्य छोड़ दिया था। उसे सिंह से बचाने के लिए उन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी। भारत वर्ष के इतने बड़े महान् पुरुषों, अवतारों और राजाओं ने एक स्वर से गाय के महत्त्व को प्रकट किया था। इसीलिए भारत वर्ष में घी-दूध की नदियाँ बहा करती थीं और यहाँ के लोग बड़े बलवान होते थे। किन्तु जब से गायों की उपेक्षा होने लगी है; तभी से घी-दूध का भी अकाल पड़ रहा है। भारत वर्ष में घी-दूध आदि बेचना बुरा समझा जाता था। घी-दूध बिना मूल्य के ही मिल जाया करता था। कहीं-कहीं छोटेछोटे गाँवों में आज भी ऐसी स्थिति देखने को मिल सकती है। अभी ऐसे लोग हैं, जो गोरस बेचना पाप समझते हैं। ____ जैन आचार्यों ने लिखा है 'दूध पीने के लिए गाय आदि पशुओं का पालन करना चाहिए, जीविका चलाने के लिए नहीं। जिन पशुओं को पाला जाय, उन्हें रस्सी आदि से बाँधना नहीं चाहिए। यदि कभी बाँधना ही पड़े तो निर्दयतापूर्वक न बाँधे। २ यदि मनुष्य सुख चाहता है तो गाय आदि जितने दूध देने वाले पशु हैं, उन्हें भी सुख दे। उनके सुख से ही मानव समाज सुखी रह सकता है।
चेतन सवारियों में सबसे पहले घोड़े का नंबर आता है। जब तक वायुयान, रेल और मोटर का आविष्कार नहीं हुआ था, तब तक घोड़े को बहुत महत्त्व दिया जाता था। लड़ाई के मैदान में भी घोड़े बहुत काम देते थे। आचार्य सोमदेव ने तो यहाँ तक लिखा है कि 'जिस राजा के पास एक भी अच्छा घोड़ा हो, वह संग्राम में विजय प्राप्त करता है, उसके राज्य में वृष्टि समय पर होती है और उसकी प्रजा धर्म, अर्थ और काम के अभ्युदय को प्राप्त करती है।
आज के युग में भी घोड़े बहुत काम आते हैं। घोड़ों के कारण लाखों मनुष्य अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। किन्तु मनुष्य उनके साथ बहुत ही निर्दय व्यवहार करता है। उसे भर पेट खाने-पीने को नहीं देता। उसे आराम नहीं करने देता। उसके ऊपर बहुत अधिक बोझा या सवारियाँ लादता है। उसे बहुत ही बुरी तरह पीटता है। उसे इतना दौड़ाता है कि उसके फेफड़े तक फट जाते हैं। अगले दोनों पैर घटने से नीचे बिलकुल टेढ़े पड़ जाते हैं और सूज जाते हैं। फिर भी दुष्ट उन्हें बुरी तरह मारते
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org