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'से भोक्ता वासरे यश्च रात्रौ रन्ता चकोरवत्' –यशस्तिलक पृष्ठ ५१
जो कीड़े दिन में नहीं दिखलाई देते वे सूर्य के अस्त होते ही न जाने कहाँ कहाँ से आ जाते हैं। वर्षा ऋतु में तो उनकी और भी वृद्धि हो जाती है। अत: रात्रि के भोजन से जीव हिंसा का होना स्वाभाविक है और उनके विषाक्त होने के कारण मनुष्य की मृत्यु तक होती देखी जाती है अत: रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए।
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