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________________ १२३ ' आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र में अनेक दृष्टिकोणों से दिन में भोजन करने का विधान किया है- दिन में सूर्य का प्रकाश रहता है, इसलिए दिन के भोजन में जीव-जन्तुओं का उतना डर नहीं रहता, जितना रात में रहता है। यदि भोजन के साथ जीव जन्तु पेट में चले जाएँ तो मनुष्य की बुद्धि और शरीर दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। चींटी पेट में चली जाय तो मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है, चूँ चली जाए तो जलोदर हो जाता है, मक्खी चली जाए तो वमन हो जाती है, मकड़ी चली जाए तो कोढ़ हो जाता है और यदि बाल चला जाय तो स्वर बिगड़ जाता है मेधां पिपीलिका हन्ति, यूका कुर्याज्जलोदरम् । कुरुते मक्षिका वान्तिं कुष्ठरोगं च कोलिकः ।। विलग्नच गले बालः स्वरभङ्गाय जायते । इत्यादयो दृष्टा दोषाः सर्वेषां निशि भोजने ।। --- योगशास्त्र, तृतीय प्रकाश, पृष्ठ ४८४. आचार्य हेमचन्द्र ने हिन्दू शास्त्रों के आधार से भी रात्रिभोजन को त्याज्य बतलाया है- चूंकि सूर्य में ऋक, साम और यजुर्वेद का तेज निहित है, अत: जितने भी शुभ कर्म हैं, उसकी किरणों से पवित्र कर, करना चाहिए। आहुति, स्नान, श्राद्ध, देवार्चन, दान और खासकर भोजन रात्रि में निषिद्ध है त्रयीतेजोमयो भानुरिति वेदविदो विदुः । तत्करैः पूतमखिलं शुभं कर्म समाचरेत् ।। नैवाहुतिर्न च स्नानं न श्राद्धं देवतार्चनम् । दानं वा विहितं रात्रौ भोजनं तु विशेषतः।। - योगशास्त्र, पृष्ठ ४८७. आयुर्वेद की दृष्टि से भी रात्रि भोजन त्याज्य है 'सूर्य की किरणों के न रहने से रात्रि के समय मनुष्य का हृदयकमल और नाभिकमल संकुचित हो जाता है तथा सूक्ष्म जीव-जन्तु भोजन के साथ पेट में पहुँच जाते हैं, अत: रात्रि के समय भोजन नहीं करना चाहिए' हृन्नाभि-पद्मसङ्कोचश्चण्डरोचिरपायतः ।। अतो नक्तं न भोक्तव्यं सूक्ष्म-जीवादनादपि ।। -योगशास्त्र, पृष्ठ ४८९ कामशास्त्र की दृष्टि से भी दिन में भोजन का विधान है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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