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________________ भोजन और उसका समय बिना भोजन किये कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता। सभी प्राणी निरन्तर भोजन के लिए ही प्रयास करते रहते हैं। मनुष्य इसकी प्राप्ति के लिए नाना प्रकार से परिश्रम करता है; किन्तु स्वस्थ और चिरायु रहने के लिए कैसा भोजन करना चाहिए तथा कब करना चाहिए, इस पर कोई ध्यान नहीं देता। भोजन के बारे में यदि मनुष्य ध्यान दे तो वह कभी बीमार नहीं पड़ सकता और न असमय में मृत्यु का शिकार ही बन सकता है। यदि उचित मात्रा से भोजन किया जाए तो स्वास्थ्य अच्छा रहता है अन्यथा स्वास्थ्य गिरने लगता और मृत्यु का संकट भी उपस्थित हो जाता है। सभी रोग भोजन की गड़बड़ी से उत्पन्न होते हैं। सभी शास्त्रकारों ने इस विषय में गहराई से विचार किया है। अन्य देशों की अपेक्षा भारत इस विषय में बहुत उदासीन है। यही कारण है कि भारतीयों का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन गिरता चला जा रहा है। मांस-मछली और अपडे आदि जो पदार्थ दूसरे देशवासी खाते हैं, अब भारतीय भी खाने लगे हैं। केवल जैन समाज ही इन चीजों को अभक्ष्य समझता है। भारत धर्मप्राण देश है और यहाँ गरमी अधिक पड़ती है, इसलिए आध्यात्मिक और शारीरिक दृष्टि से मांस आदि पदार्थ खाने योग्य नहीं माने जा सकते। भारत में अन्न प्रचुर मात्रा में होता है और शास्त्रकारों ने 'अन्नं वै प्राणाः' लिख कर इसकी उपादेयता को समझाया है। अत्र के साथ घी, दूध और शाक का प्रयोग मनुष्य को स्वस्थ, सुखी और चिरजीवी बनाता है। शास्त्रकारों ने लिखा है-'घृतं वै आयुः'-घी निश्चय से आयु है और ‘सद्यः शुक्रकरं पयः' अर्थात् दूध शीघ्र ही वीर्य बढ़ाता है। भोजन कब करना चाहिए- भोजन के समय के बारे में आयुर्वेद में अनेक मत मिलते हैं। चारायण ने रात्रि में, तिमि ने शाम को, धिषण ने दोपहर को और आचार्य चरक ने सबेरे भोजन करने का विधान किया है; पर जैनाचार्य सोमदेव ने लिखा है कि भोजन तब करना चाहिए जब भूख लगे चारायणो निशि तिमिः पुनरस्तकाले मध्ये दिनस्य धिषणश्चरकः प्रभाते। भक्तिं जगाद नृपते! मम चैष सर्गस्तस्याः स एव समयः क्षुधितो यदैव।। - यशस्तिलक, पृष्ठ ५०९. * श्रमण, वर्ष ७, अंक १२, अक्टूबर १९५६ ई. से साभार. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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