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१२१ कोई उपाय न देखकर भगवान् का ध्यान करके वह रस्सियों के सहारे उक्त कुएँ में उतर पड़ीं। ज्यों ही उसने कुछ कूड़ा-कचरा बाहर निकाला त्यों ही पर्याप्त मात्रा में जल निकल आया और उसकी लाज बच गई तभी से उक्त कुआँ ‘पतराखन' कहलाने लगा है।
यहाँ एक बावड़ी है जो दान बावड़ी कही जाती है। इसके बारे में सुनते हैं कि पहले यह यात्रियों की मांग के अनुसार उन्हें बरतन दिया करती थी तथा काम होने पर वापस ले लिया करती थी। कुछ समय बाद जब बरतनों के वापस होने में गड़बड़ी होने लगी तो उसने बरतन देना बन्द कर दिया।
यहाँ के भोयरे (तलघर) और चन्द्रप्रभमन्दिर के दर्शन करने वालों की कामनाएँ पूरी हुआ करती थीं।
___ यहाँ के सभामण्डप के मन्दिर में शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ तथा अरहनाथ-इन तीन तीर्थङ्करों की मूर्ति को साष्टाङ्ग नमन करने वालों के रोग मिट जाया करते थे।
यहां के भोयरे में एक काला नाग कुछ काल तक पहरा देता रहा। वह दर्शनार्थियों को कोई बाधा नहीं पहुँचाता था। दर्शनार्थियों के आने पर वह उनके रास्ते से दूर हो जाला था।
यहाँ के ३५वें मन्दिर के निकट एक गर्भवती शेरनी लगातार एक मास तक रही थी। इस अवधि में उसने किसी के ऊपर कभी तनिक भी आक्रमण नहीं किया था।
यहाँ ४ बगीचे हैं, १ उदासीनाश्रम है तथा यात्रियों के ठहरने के लिये ४ धर्मशालाएँ भी हैं।
वीरनिर्वाण संवत् २४४४ में प्रतिष्ठाचार्य स्वर्गीय पं. मोती लाल जी वर्णी ने यहाँ एक विद्यालय खोला था जिसका नाम वीरविद्यालय है। छात्रों के बौद्धिक विकास के लिये उन्होंने अपनी सम्पत्ति लगाकर यह सरस्वतीसदन खोला था। विद्यालय की स्थापना में उन्हें स्व० गणेश प्रसाद जी वर्णी का पूरा सहयोग प्राप्त हुआ था।
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