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भगवान महावीर की देन
चैत्र मास का अपना स्वतन्त्र महत्त्व है। ऋतुराज वसन्त का प्रादुर्भाव इसी मास में होता है। नूतन वर्ष का प्रारम्भ इसी मास से माना जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम का जन्म इसी मास में हुआ और इसी मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को दयामूर्ति भगवान् महावीर ने अपने जन्म से पवित्र किया।
आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले वैशाली (बिहार) में राजा सिद्धार्थ के यहाँ भगवान् महावीर का जन्म हुआ था। उनके जन्म लेते ही सिद्धार्थ की श्री सहसा बढ़ने लगी, अत: उन्होंने अपने पुत्र का नाम वर्धमान रखा। बाल्यकाल में ही विशिष्ट प्रतिभा को देख कर उनका नाम सन्मति पड़ गया था और बाद में राग आदि विषयों पर विजय पाने के कारण वे महावीर नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका यही नाम आज प्रचलित है। - भगवान् महावीर अत्यन्त दयालु थे। वे किसी भी प्राणी के दुःख को नहीं देख सकते थे। उनके समय में भारतवर्ष में यज्ञ-याग का बहुत प्रचार था और उसमें हिंसा भी खूब होती थी। वे बचपन से ही यह चाहते थे कि यज्ञ आदि धार्मिक अनुष्ठानों तथा सामाजिक कार्यों आदि में कहीं भी हिंसा न हो। सभी लोग अहिंसा का पालन करें।
जगत् में जितने जीव हैं वे सब एक दूसरे के उपकारी हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति ये पांचों कहने को एकेन्द्रिय जीव हैं, किन्तु ये जितना उपकार करते हैं, उतना पञ्चेन्द्रिय जीव भी नहीं कर सकते। यदि पृथ्वी न हो, या होते हुए भी वह कुछ क्षणों को हिलने डुलने लगे तो सारा संसार हाय-हाय करने लग जायगा। पेय वस्तुएँ बहुत सी हैं, किन्तु जल के बिना प्यास नहीं बुझाई जा सकती और न उसके बिना संसार जीवित ही रह सकता है। अग्नि से कितने काम निकलते हैं, यह सभी जानते हैं। वायु के बिना तो कोई भी जीव जीवित नहीं रह सकता। वनस्पति तो साक्षात् कल्प वृक्ष हैं। खाने, पीने, ओढ़ने, पहनने और रहने के साधनों की पूर्ति वनस्पति से ही होती है। पृथ्वी आदि पांचों प्रकार के उक्त स्थावर जीव सृष्टि के प्रारम्भ से ही नि:स्वार्थ भाव से लोकोपकार में लगे हुए हैं।
___ गाय आदि पशु मानव जाति को अपना दूध पिलाते हैं और अन्न आदि की उत्पत्ति में सहायक होते हैं। हाथी, घोड़े और ऊँट आदि पशु बोझा ढोकर मानव जाति की *. श्रमण, वर्ष ११; अंक ६, अप्रैल १९६० से साभार.
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