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________________ ११२ मक्खलि गोशाल नियतवाद के, अजित केशकम्बल उच्छेदवाद के, पकुधकात्यायन अन्योन्यवाद के, संजयवेलट्ठिपुत्र विक्षेपवाद के और गौतम बुद्ध क्षणभङ्गवाद के समर्थक थे। उवासगदसाओ (उपासकदशाङ्गसूत्र) के प्रथम और द्वितीय अध्ययन के पढ़ने से यह स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि मक्खलि गोशाल भगवान् महावीर का अधिक विरोध करता था- यत्र-तत्र जा जा कर उनके विरोध में उनके भक्तों को भड़काया करता था। पर इन सभी की मान्यताएं इन्हीं के साथ समाप्त हो गयीं। गौतम बुद्ध को छोड़ कर इनमें से किसी का भी कोई साहित्य आज उपलब्ध नहीं है। इन सबके रहते हुए भी भगवान् महावीर की प्रभावशक्ति तनिक भी प्रतिहत नहीं हुई। भगवान महावीर की तपस्या और देशना पूर्णतः सफल रही। इनकी अहिंसा आदि के कुछ सिद्धान्त भगवान् बुद्ध को भी मान्य रहे, पर भगवान् महावीर और उनके अनुयायियों ने अहिंसा के जिस रूप को अपनाया उसे भगवान् बुद्ध या उनके अनुयायी नहीं अपना सके। भगवान् महावीर की अहिंसा ने महात्मा गांधी भी प्रभावित किया। इसी अहिंसा को शस्त्र बना कर इस देश को दासता की शृङ्खलाओं से छुड़वाने में उन्हें पूर्ण सफलता प्राप्त हुई। कुछ लोगों का ख्याल है कि जैनों की अहिंसा देश की परतन्त्रता का कारण हुई थी। किन्तु यह अवर्णवाद मात्र है। देश की परतन्त्रता का कारण शासकों की विलासिता तथा उनका आपसी विरोध रहा है। देश पर आक्रमण करने वालों के साथ युद्ध करने पर यदि आक्रमणकारियों की हिंसा हो जाये तो वह पाप नहीं है। क्योंकि हिंसा भावना पर आश्रित होती है। ऐसे अवसरों पर देश रक्षा की भावना रहती है, न कि अकारण दूसरों को मारने की। गृहस्थ के लिए चार प्रकार की हिंसाओं में केवल संकल्पी हिंसा ही त्याज्य होती है। लगातार तीस वर्षों तक धर्मामृत की वर्षा करने के उपरान्त भगवान् महावीर बिहार प्रान्त की पावा नगरी में पहुँचे और वहीं से वे बहत्तर वर्ष की आयु में ईसा से ५२७ वर्ष पूर्व कार्तिक की अमावस्या की अरुणोदय बेला में मोक्ष गये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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