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वस्तु की सही जानकारी प्राप्त होगी और कलह का विराम भी।
प्रयत्न करने पर भी जब इष्ट फल की प्राप्ति नहीं होती तो असफल व्यक्ति दूसरे के मत्थे दोष मढ़ कर उससे झगड़ने लगता है और इसमें हिंसा तक की नौबत आ जाती है। पर असफल व्यक्ति यदि यह सोच ले कि जैसा रहा वैसा ही फल मिला तो झगड़े की नौबत नहीं आ सकती और न हिंसा ही हो सकती है। नींव खोदने वाला नीचे की ओर ही बढ़ता जायगा और दीवार बनाने वाला ऊपर की ओर ही। इसी तरह जिसका जैसा कर्म होता है वैसा ही उसे फल मिलता है ।
सभी प्राणियों के व्यक्तित्व को अपने ही समान महत्व दिया जाना चाहिए यही वास्तविक साम्यवाद है। जगत् के सभी प्राणी एक दूसरे का उपकार करते हैं, अत: अपने-अपने स्थान में सभी का महत्व है। मानव समाज का जीवन पशुसमाज पर और पशुसमाज का जीवन मानव समाज पर आश्रित है। जन्मजात शिशु को पहले गाय का दूध दिया जाता है, मां का दूध तो उसे चार-पांच दिनों के बाद मिल पाता है। बैलों से खेती में मदद मिलती है। घोड़े आदि मानव की यात्रा में सहायक होते हैं। अत: मानव समाज का जीवन पशु समाज पर आश्रित है। मानव भी उन्हें खिला-पिला कर जलाता है, अत: उनका जीवन मानव समाज पर आश्रित है। मानव का जीवन गर्भावस्था से लेकर श्मशान पहँचने तक पराश्रित ही रहता है। जिनका आश्रय लेना पड़ता है उनमें सभी वर्ग के लोग शामिल हैं। एकेन्द्रिय जीवों को छोटा समझा जाता है, पर वे तो पञ्चेन्द्रिय जीवों से भी अधिक उपकार करते हैं। वनस्पति न हो तो दाल, चावल, गेहूँ, लकड़ी और ईधन आदि कहां से प्राप्त होंगे? जल और वायु न हो तो जीवधारी कैसे जीवित रहेंगें? पृथ्वी न हो तो रहने के लिए आधार किसे बनाया जायगा? इस दृष्टि से सभी प्राणियों के व्यक्तित्व का समादर होना चाहिए।
___ भगवान् महावीर के इस उपदेश में सभी का हित निहित है। इसके परिपालन से सभी अभ्युदय प्राप्त कर सकते हैं।
"मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना'-- इस उक्ति के अनुसार भगवान् महावीर के समय में कतिपय ऐसे भी व्यक्ति रहे जो अपने को सर्वज्ञ, सर्वदर्शी एवं तीर्थ प्रवर्तक मानते थे, यद्यपि उनमें वे विशेषताएं नहीं रहीं जो भगवान् महावीर में विद्यमान थीं। ऐसे व्यक्तियों में पूरण आदि थे जिनका नामोल्लेख आचार्य विद्यानन्द ने आप्तमीमांसा की दूसरी कारिका की व्याख्या करते हुए अष्टसहस्री (पृ० ४) में किया है।
पूरण के आगे आदि पद जुड़ा हुआ है जिससे ज्ञात होता है कि आचार्य विद्यानन्द को मक्खलि गोशाल, अजित केशकम्बल, पकुध कात्यायन, संजयवेलठ्ठिपुत्र और * गौतम बुद्ध ये पांच और विवक्षित हैं। इनकी मान्यताएं न केवल भगवान् महावीर से, बल्कि आपस में भी एक दूसरे से भिन्न थीं। पूरण या पूर्ण काश्यप अक्रियवाद के,
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