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उनका महावीर नाम पड़ गया।
पूर्णज्ञान की प्राप्ति होने पर तीर्थङ्करों की देशना प्रारम्भ हो जाती है, पर योग्य शिष्य के अभाव में भगवान् महावीर की देशना प्रारम्भ नहीं हुई और ६६ दिनों तक वे मौन पूर्वक विहार करते रहे ।
विहार करते-करते वे मगध की राजधानी राजगृह में पहुँचे और वहां उन्होंने विपुलाचल को अलङ्कृत किया। इस शुभ समाचार को सुनते ही राजा श्रेणिक (बिम्बसार) और उनके प्रजाजनों ने उनके दर्शनों लिए अपने-अपने स्थान से प्रस्थान कर दिया। भगवान् महावीर की सर्वज्ञता की बात को सुनकर वहां के प्रतिभाशाली महान् इन्द्रभूति गौतम को, जो ब्राह्मण थे, विश्वास नहीं हुआ, फलतः वे भी उनकी सर्वज्ञता को परखने के लिए जीवतत्वविषयक जटिल शङ्काओं को लेकर अपने पांच सौ शिष्यों के साथ विपुलाचल पर गये। उन्हें आते देख कर भगवान् महावीर ने दूर से ही कहा- आओ गौतम, आओ ! गौतम सोचने लगे कि आस-पास में बैठे हुए किसी स्थानीय व्यक्ति से उन्हें मेरा सगोत्र नाम ज्ञात हुआ होगा। पास में जाकर ज्यों ही वे बैठे त्यों ही भगवान् महावीर ने बिना पूछे ही उनकी शङ्काओं को बतलाकर उनका विस्तृत सटीक समाधान दे दिया। इससे गौतम इतने अधिक प्रभावित हुए कि तत्काल उनके शिष्य बन कर दीक्षित हो गये। इनके पश्चात् वायुभूति, अग्निभूति, सुधर्मा, मौर्य, मौन्द्रय, पुत्र, मैत्रेय, अकम्पन, अन्धवेला और प्रभास भी शिष्य बन गये और दीक्षा ग्रहण कर ली। इन ग्यारह शिष्यों - गणधरों में प्राधान्य गौतम को प्राप्त हुआ । इसीलिए प्रवचन के प्रारम्भ में मङ्गलाचरण में भगवान् महावीर के बाद उन्हीं को मङ्गल रूप में स्मरण किया जाता है, जैसा कि निम्नाङ्कित श्लोक से स्पष्ट है
मङ्गलं भगवान् वीरो मङ्गलं गौतमो गणी । मङ्गलं कुन्दकुन्दार्यो जैनधर्मोऽस्तु मङ्गलम् ।।
इसके उपरान्त श्रावण कृष्णा प्रतिपदा के पूर्वाह्न की मङ्गलबेला में अभिजित नक्षत्र में भगवान् महावीर की प्रथम देशना वहीं पर हुई । लोकहिताय भगवान् महावीर की यह देशना उनकी बयालीस वर्ष की आयु से बहत्तर वर्ष की आयु पर्यन्त यत्र-तत्र लगातार तीस वर्षों तक चालू रही।
इस देशना का संकलन भगवान् महावीर के प्रथम गणधर गौतम ने किया, जो आज द्वादशाङ्गवाणी या विपुल जैन वाङ्मय के रूप में समुपलब्ध है।
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भगवान् महावीर ने अपनी देशना में बतलाया कि सभी प्राणी सुख के अभिलाषी होते हैं और उसी के लिए वे सतत् प्रयत्नशील भी रहते हैं । दुःख किसी को भी इ नहीं होता । अतः मानव को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे किसी को दुःख
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