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________________ १०३ "यदि कोई व्यक्ति सैकड़ों तप कर ले और निरन्तर दान भी देता रहे किन्तु यदि उसके मन में भी कभी हिंसा का भाव उत्पन्न हो जाय तो उसकी सब तपस्याओं और दान पर पानी फिर जाता है।" तनोत् जन्तुः शतरास्तपांसि दतातु दानानि निरन्त करोति चेत्प्राणिवधे ऽ भिलाषं, कर्थानि सर्वाण्यपि तानि दया अमृत के समान है और हिंसा मद्य के । यद्यपि ये दोनों ही आत्मारूपी महा समुद्र में उत्पन्न होती हैं, किन्तु इन दोनों में से एक (कृपा) मानव को अमर बनाने में कारण और दूसरी (सुरा) उसे कुगतियों में गिराने वाली मूर्च्छा प्रदान करती हैकृपा सुधेवात्म सुधाम्बुराशौ हिंसा सुरेव द्वयमम्यु देति । एका नाराण ममरत्व हेतु रन्यातु, मूर्च्छा पतनाय दत्ते ।। वही १३-२१ प्रस्तुत अहिंसा के विचार भगवान् नेमिनाथ के हैं, जो उनके मन में जूनागढ़ के बाड़े में घिरे हुए पशुओं के करुण क्रन्दन को सुनने से उत्पन्न हुए थे। इनके छोटे भाई भगवान् कृष्ण गो रक्षा का समर्थन करते किन्तु भगवान् नेमिनाथ की दृष्टि में सभी प्राणी रक्षणीय थे। यह बात प्रस्तुत प्रकरण को पढ़ने से बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है। यह इसकी पांचवी विशेषता है। राणि । तस्य । । वही १३-१८ (६) छन्दों का प्रयोग — प्रस्तुत महाकाव्य के सातवें सर्ग में आर्या आदि अनेक छन्दों का प्रयोग किया गया है, जिनकी संख्या ४० से भी ऊपर है। श्लोकों में छन्दों के नाम भी कवि ने बड़ी कुशलता से दे दिये हैं, जिनका अर्थ प्रस्तुत कथा के साथ लगता चला जाता है। कहीं-कहीं तो छन्दों की विशेष बातें और परिभाषाएं भी आ गई हैं। जैसे— वृत्तं व्रजति न भङ्ग यदीयत त्वैक चेतसां विदुषाम् । जन्म मयास्तर सास्ते भान्त्येतस्मिन् गणाः ख्याताः । । ७-१ पहला अर्थ - इस रैवतक (गिरनार) पर्वत पर प्रसिद्ध साधुओं के सङ्ग विराजमान हैं। उनकी आत्मा जन्म आदि के भय से मुक्त है। जो विद्वान् हृदय से उनके स्वरूप का चिन्तन करते हैं, चरित्र उनका निर्मल हो जाता है। दूसरा अर्थ - छन्दशास्त्र में जगण, नगण, मगण, भगण, यगण, सगण, तगण " और रगण ये आठ गण प्रसिद्ध हैं। जो विद्वान् इन आठ गणों के स्वरूप को हृदय से समझ लेते हैं, उनका छन्द, भङ्ग (छन्दो भङ्ग) नहीं होता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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