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________________ १०२ (४) काव्यों में नायक की अनेक पत्नियों का वर्णन मिलता है, किन्तु इस काव्य में वह भी नहीं है। प्रस्तुत महाकाव्य के नायक भगवान् नेमिनाथ हैं। उन्हें व्याह के समय ही वैराग्य हो गया था, अतः वे बाल ब्रह्मचारी ही रह गये। उनके विरक्त हो जाने से राजुल भी विरक्त हो गई । शास्त्रीय दृष्टि से छः फेरे तक कन्या व्यवहार होता है। राजुल को तो एक भी फेरा नहीं फिरा था, अतः उसका विवाह हो जाता तो भी उचित था, पर उसने विवाह नहीं किया। इस घटना का पढ़ने वालों के ऊपर बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ता है। आज के युग में लोग राग के सागर में गोते लगाते दृष्टिगोचर हो रहे हैं। अत; ऐसे काव्यों की आवश्यकता है जो जनता को रागसागर में डूब मरने से बचा सकें । कवि प्रजापति के समान माना जाता है— 'अपारे काव्य संसारे कविरेव प्रजापतिः' । कवि जनता की भावना को चाहे जैसा उभार सकता है। यदि वह स्वयं शृङ्गारी है तो जनता को शृङ्गारी और विरागी है तो जनता को भी विरागी बना सकता है । इस दृष्टि से आज के युग में नेमिनिर्वाण महाकाव्य बहुत ही उपयोगी है। यह उसकी चौथी विशेषता है। T (५) आज लोग धर्मशास्त्र को उपेक्षा-दृष्टि से देखने लगे हैं। धर्मशास्त्र में वर्णित शिक्षाएं यदि काव्य के माध्यम से हो जायें तो पाठकों के ऊपर अवश्य ही प्रभाव पड़ता है। प्रस्तुत महाकाव्य में बीच-बीच में सुन्दर धार्मिक शिक्षाएं दी हैं जो मानव को प्रभावित करने वाली हैं। उनमें अहिंसा की शिक्षा मुख्य है- "जो अपने शरीर को पुष्ट करने के लिए प्राणियों का वध करता है, वह दुष्ट जाड़े से बचने के लिए निश्चय ही धधकती हुई आग में प्रवेश करता है । जैसे अग्नि में प्रवेश करने से दुःख होता है इसी तरह हिंसा करने से भी दुख होता है, क्योंकि हिंसा सभी प्रकार के दुःखों का उदय कराने के लिए मूल मन्त्र है"निःशेष दुःखोदय मूलमन्त्र, यौ देह पुष्टयै वद्यमादधाति । नूनं स शीतार्तिभिदे दुरात्मा, प्रवेशमग्नो ज्वलिते करोति ।। नेमिनिर्वाण १३-१५ "यदि कोई हिंसा करता है तो उसके तप और दान करने के प्रयत्न व्यर्थ हैं और यदि वह कभी भी हिंसा नहीं करता तथा न ही उसे आदर की दृष्टि से देखता है तो उसे तप और दान के लिए प्रयत्न करने की क्या आवश्यकता ?” वधं विधत्ते यदि जातु जन्तुरलं, तपोदान विधाम यत्नैः । तमेव चेन्नाद्रियते कदाचिदलं, तपो दान विधान यत्नै ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only . वही १३-१८ - www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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