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गया है। कहीं समस्त पद भी हैं, किन्तु लम्बे-लम्बे समस्त पद नहीं हैं। ग्रन्थ में आदि से अन्त तक प्रसाद और माधुर्य इन दो गुणों का सम्मिश्रण स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। अलङ्कारशास्त्र के अनुसार शान्त रस के साथ इन्हीं दो गुणों का होना उचित है। प्रस्तुत महाकाव्य की विशेषताएं (१) भगवान् नेमिनाथ के चचेरे भाई भगवान् कृष्ण थे। कृष्ण के ऊपर ब्राह्मण कवियों
ने अनेक ग्रन्थ रचे हैं, जिनमें कुछ महाकाव्य भी हैं। 'शिशुपालवध' इन में से एक है। इसके रचनाकार महाकवि माघ थे। इनका समय लगभग आठवीं शताब्दी है, क्योंकि इनके महाकाव्य के 'रम्या इति प्राप्तवती: पताकाः' इत्यादि पद्य नवमी शताब्दी में निर्मित ध्वन्यालोक में उद्धत हैं। यह काव्य भारवि के काव्य (किरातार्जुनीयम्) के बाद का है, किन्तु उससे अच्छा है। मल्लिनाथ ने इसका बहुत समय तक अध्ययन किया था—'माघे मेधे गतं वध:'। काव्य सभी दृष्टियों से अच्छा है। किन्तु 'शिशुपालवध' इस नाम में वध उचित नहीं जान पड़ता है। इसीलिए विद्वत्संसार में इस महाकाव्य का 'माघ' नाम प्रचलित हो गया है। वाङ्गभट ने देखा भगवान् कृष्ण के बारे में तो माघकवि महाकाव्य रच चुके हैं, किन्तु उनके बड़े भाई नेमिनाथ के बारे में किसी ने कुछ भी नहीं रचा, इसी कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने 'नेमिनिर्वाणम्' महाकाव्य रचा। ‘वध' अमङ्गल सूचक है, अत: वाग्भट ने अपने महाकाव्य का मङ्गल सूचक 'नेमिनिर्वाण' नाम रखा। यह प्रस्तुत महाकाव्य की पहली विशेषता है। प्रस्तुत महाकाव्य में प्रारम्भ के चौबीस पद्यों में क्रमश २४ तीर्थङ्करों को नमस्कार किया गया है, जिनके पढ़ने से उन (तीर्थङ्करों) का विराग होना व्यक्त होता है। जैनेतर काव्यों के प्रारम्भ में ऐसे भी मङ्गल श्लोक हैं, जिनसे उनके परमाराध्य देवों की सरागता व्यक्त होती है। विरागता ही मुक्ति की जननी है और सरागता संसार की, इसीलिए जैन ग्रन्थों में विरागता या वीतरागता की महिमा वर्णित है। इसका पुट प्रस्तुत महाकाव्य में मङ्गल पद्यों में भी है। यह इसकी दूसरी
विशेषता है। (३) महाकाव्य के वर्णनीय विषयों में अलङ्कार शास्त्र के अनुसार राजा और रानी का
वर्णन आवश्यक है, जैसा कि अलङ्कारचिन्तामणिकार ने आचार्य जयसेन 'भूमुक्पत्नी' इत्यादि पद्य में सूचित किया है। रानी का वर्णन करते समय उसका नख-शिख शृंगार ब्यौरे बार लिखा जाता है, यहां तक कि कुछ तो योनि तक का भी वर्णन कर डालते हैं। किन्तु प्रस्तुत महाकाव्य इसका अपवाद है। इसमें नायिका का इस ढंग से से वर्णन नहीं किया गया। यह इसकी तीसरी विशेषता है
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