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का आश्रय किया गया है।
बारहवीं शताब्दी में आचार्य हेमचन्द्र ने 'कुमारपालचरित' की, जिसका दूसरा नाम 'द्वयाश्रयकाव्य' है, रचना की। इसके प्रारम्भ के बीस सर्गों में संस्कृत और अन्त के आठ सर्गों में प्राकृत भाषा का आश्रय लिया गया है। हेमचन्द्र ने इससे अपने संस्कृत और प्राकृत व्याकरणों के उदाहरणों को प्रदर्शित किया है।
इसी तरह के और भी अनेक जैन काव्य प्रकाशित हो चुके हैं जो अपनी विशेषताओं के कारण विद्वत्संसार में समाहित हैं। 'नेमिनिर्वाणम्' उन्हीं महाकाव्यों में से एक है। यह महाकाव्य ऊपर लिखे तीन काव्यों की शैली से विभूषित नहीं है, किन्तु इसमें अनेक विशेषताएं हैं, जो अन्य काव्यों में नहीं पाई जाती ।
लेखक का परिचय- नेमिनिर्वाण के कर्ता ने अपने महाकाव्य के अन्त में अपना संक्षिप्त परिचय दिया है, जिससे ज्ञात होता है कि वे अहिच्छत्र के निवासी थे। उनकी जाति पोरवाड थी। उनके पिता का नाम छाहड और उनका स्वयं का नाम वाग्भट था
अहिच्छत्र पुरोत्पन्न प्राग्वाट कुलशालिनः । द्राहडस्य युतश्चक्रे प्रबन्धं वाग्भटः कविः ।।
___ (हस्तलिखित प्रति के आधार से) इनका अनुमानित समय ग्यारहवीं शताब्दी है।
नाम में भ्रम- वाग्भट के नाम से अनेक कवि हुए हैं, जिनके नाम के बारे में विद्वानों को भ्रम हो जाता है। किन्तु पिता का नाम ज्ञात होने से उनके बारे में उत्पन्न भ्रम दूर हो जाता है। प्रस्तुत कवि के पिता का नाम छाहड था, जैसा कि ऊपर के पद्य से स्पष्ट है। काव्यानुशासनकार के पिता का नाम नेमिकुमार, वाग्भटालङ्कार के कर्ता के पिता का नाम सोम और अष्टाङ्गहृदय के रचनाकार के पिता का नाम सिंहगुप्त था। विशेष जानकारी के लिए इनके ग्रन्थ और श्रद्धेय प्रेमीजी का जैन साहित्य और इतिहास द्रष्टव्य है।
ग्रन्थ का विषय- प्रस्तुत महाकाव्य के पन्द्रह सर्गों में जैनों के बाईसवें तीर्थङ्कर नेमिनाथ का जीवन वृत्त वर्णित है। उनके गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण इन पांच कल्याणकों में अन्तिम निर्वाण मुख्य है, अत: इसी के आधार पर प्रस्तुत महाकाव्य का नाम 'नेमिनिर्वाणम्' रखा गया है।
रस, रीति और गुण- प्रस्तुत महाकाव्य में शान्तरस है। यों बीच-बीच में। प्रसङ्गवश और रस भी हैं, किन्तु वे सब अङ्क (गौण) हैं शान्त रस अङ्गी (प्रधान) है। रीति वैदर्थी है। आरम्भ से अन्त तक प्रस्तुत ग्रन्थ में असमस्त पदों का प्रयोग किया
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