SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चकर महिमभट्ट के सिद्धान्त का खण्डन कर आनन्दवर्धन के सिद्धान्त का मण्डन किया। मम्मट के अव्यवहित उत्तरकाल में आचार्य हेमचन्द्र ने महिमभट्ट का खण्डन और ध्वन्यालोककार आनन्दवर्धन के ध्वनि-सिद्धान्त का जोरदार समर्थन किया। फिर तो ध्वनिसिद्धान्त का खूब ही प्रचार बढ़ा। ध्वनि के प्रकरण में आचार्य हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन में ऐसे अनेक उदाहरण दिये हैं, जो ध्वन्यालोक और काव्यप्रकाश आदि विशिष्ट ग्रन्थों में भी नहीं मिलते। जैसे बहलतमा हअराई अज्ज पउत्थो पई घरं सुण्णं। तह जग्गिसज्जु सज्जिय न जहा अम्हे मुसिज्जामो।। – काव्यानुशासन, पृष्ठ ३६ (निर्णयसागर प्रेस प्रकाशन) एक नायिका- जिसका पति प्रवास में है और घर बिलकुल सूना है- रात्रि के समय अपने पड़ोसी से कह रही है ___ आज की रात्रि बहुत दुःखदायिनी है, क्योंकि चारों ओर अंधेरा छाया हुआ है, पतिदेव बाहर गये हैं और घर सूना है। इसलिये हे पड़ोसी आज जागते रहना, जिससे हमारी और तुम्हारी चोरी न हो जाय। इस विधिवाक्य से अन्य विधि व्यंग है.---- तुम निर्भय होकर मेरे पास आ जाओ। कहीं वाच्य से- जो न तो विधिपरक हो और न निषेधपरक- निषेध सूचक । व्यंग्य निकलता है। जैसे जीविताशाबलवती धनाशा दुर्बला मम। गच्छ वा तिष्ठ वा पान्थ स्वावस्था तु निवेदिता।। -- काव्यानुशासन, पृष्ठ ३७ (निर्णयसागर प्रेस प्रकाशन) प्रवास के लिये उद्यत हुए पति को रोकने के लिये पत्नी कह रही है हे पान्थ! मुझे अपने जीवन में जितनी आसक्ति है, उतनी धन में नहीं, मझे धन से जीवन प्यारा है। (अत: मैं जीवन देकर धन लेना पसन्द नहीं कर सकती)। अब आप जाइये या रुकिये, मैंने अपनी अवस्था आपको बतला दी है। (तुम्हारे बिना मेरा जीवित रहना कठिन है)। यहाँ पति के जाने या न जाने का विधान नहीं किया गया है। वाच्यार्थ से हाँ या ना दोनों में से किसी एक का भी बोध नहीं होता, किन्तु व्यंग्य रूप से यह प्रतीत "हो रहा है कि पत्नी अपने पति को रोकना चाहती है। आपको मेरा उतना ख्याल नहीं जितना यात्रा का, यह भाव प्रकट करने के लिये पति को ‘पान्थ' पद से सम्बोधित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy