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आचाराङ्ग के कुछ महत्त्वपूर्ण सूत्र : एक विश्लेषण : ५ (७४/७५)। बाद में यह अवसर नहीं आएगा। हे पण्डित, तू क्षण को जान और प्रमाद न कर। मेधावी बनाम मन्दमति
आयारो में मनुष्य के दो स्पष्ट प्रारूप बताए गए हैं -- मेधावी और मूढ़ या मन्दमति।
प्रथम दृष्टि में ऐसा प्रतीत होता है मेधावी और मढ़ मानव बद्धि का एक माप है जिसके एक छोर पर 'मेधावी' और दूसरे छोर पर 'मन्द-मति' है। लेकिन वस्तुत: ऐसा है नहीं। यह मानव बुद्धि का पैमाना न होकर व्यक्तियों के दो वर्ग हैं। मेधावी व्यक्तियों की कुछ नैतिक-चारित्रिक विशेषताएँ हैं जो मन्दमति व्यक्तियों से भिन्न और उनकी विरोधी हैं।
मन्दमति लोग मोह से आवृत्त होते हैं। ये आसक्ति में फंसे हुए लोग हैं --- मंदा मोहेण पाउडा (७६/३०)। दूसरी ओर मेधावी पुरुष मोह और आसक्ति को अपने पास फटकने नहीं देते। वे इन सबसे निवृत्त होते हैं। अरिइं आउट्टे से मेहावी (७६/२७)- जो अरति का-चैतविक उद्वेगों का-निवर्तन करता है, वही मेधावी है। आसक्ति मनुष्य को बेचैन करती है, अशान्त करती है उसे व्यथित और उद्वेलित करती है। किन्तु मेधावी पुरुष वह है जो न चिन्तित होता है, न व्यथित या उद्वेलित। वह सभी उद्वेगों को अपने से बाहर निकाल फेंकता है, उनसे निवृत्ति पा लेता है।
_ 'अरति' (अरइ) का अर्थ जहाँ एक ओर बेचैनी और अशान्ति से है, वहीं दूसरी ओर, विरक्ति या राग के अभाव को भी 'अरति' कहा गया है; किन्तु 'अरिइं आउट्टे' राग के अभाव से निवृत्ति नहीं हैं, वह तो स्वयं राग से- असंयम से- निवृत्ति है। संयम में रति और असंयम में अरति करने से चैतन्य और आनन्द का विकास होता है। संयम में अरति और असंयम में रति करने से उसका ह्रास होता है। 'अरिइं आउट्टे' संयम से होने वाली 'अरति' (विरक्ति) का निवर्तन है (पृ० १०९)। असंज मे नियत्तिं च, संजमे य पवत्तणं। . जो व्यक्ति मन्दमति है, सतत मूढ़ है। वह धर्म को नहीं समझता। सततं मूड़े धम्मं णाभिजाणइ (८८/९३)। दूसरी ओर जो व्यक्ति आज्ञा (धर्म) में श्रद्धा रखता है, वह मेधावी है - सडढी आणाए मेहावी (१४०/८०)।.मेधावी सदा धर्म का पालन करता है और निर्देश का कभी अतिक्रमण नहीं करता। णिहेसं णातिवट्टेज्जा मेहावी (२०२/११५)। . आयारो में मेधावी, धीर, वीर आदि शब्द लगभग समानार्थक हैं, जो मेधावी नहीं है, वह मन्दमति है; जो धीर नहीं है वह आतुर है; जो वीर नहीं है, वह कायर
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