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________________ ५० : श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९ वासउ गुरिच विराली सयपरि कत्थं पिएइ णारीया । गभ्भहो चलणु णिवारइ पयरं वारेइ णिम्भंतं ।। २४०।। महु सह धादय चुण्णं अहतंदुलि तंदुलोय पीएण। अहव तिलक्खा अय पय पयरं वारेइ इक्किक्कं ।। २४१।। तंदुलि मूलिरसं जणु तंदुल तोएण पीयमाणेण। सव्वे पयर पणासइ णिद्दिष्टुं सत्थइत्तेहिं ।। २४२।। वास गडि मूली वकाइणि करे लिणि समा तेले। पक्वेणय तणुभंगे गम्भो पडणोण संभवइ ।। २४३।। एरंडस्सयतेलं पयपीए हरइ अंडविद्धीय। अहवासेजड णाही लेवे सुहि पसवए णारी।। २४४।। अमएतरुजड तक्को तिय पिय किसंग थूल खणि हवइ । अहव कसेरु चुण्णं महु लेवे उवरु खयडेइ ।। २४५।। अहव करेलीमूलं पाणिय लेवेण णिग्गये जोणी । अह सिंधव तेलजुई भंगिलि विरमि गम्भु न होइ ।। २४६।। हयगंध हिंगु सिंधव कंजिय कढ़िया सुह पसंवए पीए । अह उंगा जुव पण्णा जोणिधरिय सूलु णासेइ ।। २४७।। वणिपत्ता ललिविट्ठा एरंड तेल लिवाडि जोणिधरो। अहवा पुणणव अंजणु जोणिधरिय सूलु णासेइ ।। २४८।। पीपलि गुट मयणहला कंडु त्तुंविणि वीय दंति जवखारं । थोहरि पय धरि जोणी फुल्ल पवाहो गई होइ ।। २४९।। विहइ जड मयण वासा पीयल खारेण गुलिय दिण सत्ता। खद्धेसु जोणि धारिए फुल्ल पवाहो गर्ड होइ ।। २५० ।। सीह मुही दलमूलं छाया सुक्केण चुण्ण खीर सह । इग सत्तेणय पीए अडदह कुट्ठा पणासंति ।। २५१।। दाडिम कणा महोसहि सिंधव वय कुठु हिंगु तव चुण्णं। उह जले सम सत्ता पीए चुल सीदि वायहरा ।। २५२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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